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ठाणं (स्थान)
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स्थान १० : सूत्र १४-१५
१४. दसविधा असमाधी पण्णत्ता, तं दशविधः असमाधिः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १४. असमाधि के दस प्रकार हैंजहा
१. प्राणातिपात का अविरमण, पाणातिवाते, 'मुसावाते,
प्राणातिपातः, मृषावादः, अदत्तादानं, २. मृषावाद का अविरमण, अदिण्णादाणे, मेहुणे, परिग्गहे, मैथुनं,
३. अदत्तादान का अविरमण, परिग्रहः, ईर्याऽसमितिः,
४. मैथुन का अविरमण, इरियाऽसमिती, 'भासाऽसमिती, भाषाऽसमितिः, एषणाऽसमितिः,
५. परिग्रह का अविरमण, एसणाऽसमिती, आदान-भण्ड-अमत्र-निक्षेपणाऽसमितिः,
६. ईर्या की असमिति-असम्यक् प्रवृत्ति आया-संड-मत्त-पिदखेवणाऽ उच्चार-प्रश्रवण-श्लेष्म-सिंघाण क-जल्ल
७. भाषा की असमिति, वणासमिती, पारिष्ठापनिकाऽसमितिः ।
८. एषणाकी असमिति, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाणग
६.आदान-भण्ड-अमत्र-निक्षेपकी असमिति जल्ल-पारिद्वावणियाऽसमिती।
१०. उच्चार-प्रलवण-श्लेष्म सिधाण-जल्ल
पारिष्टापनिका की असमिति। पव्वज्जा-पदं
प्रजज्या-पदस् १५. दस विधा पच्चज्जा पण्णता, तं दाविधा प्रवज्या प्रज्ञप्ता, तद्यथा- १५. प्रव्रज्या के दस प्रकार है
जहा
संगहणी-गाहा १. छंदा रोसा परिजण्या, सुविशा पडिस्सुता घेव। सारणिया रोगिणिया, अणादिता देवसम्पत्ती।। वच्छाणुबंधिया।
संग्रहणी-गाथा १. छन्दा रोषा परिघुना, स्वप्ना प्रतिश्रुता चैव। स्मारणिका रोगिणिका, अनाहता देवसंज्ञप्तिः ।। वत्साऽनुबन्धिका।
१. छन्दा-अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली। २. रोषाध से ली जाने वाली। ३. परिघुना-दरिद्रता से ली जाने वाली। ४. स्वप्ना-स्वप्न के निमित्त से ली जाने वालो या स्वप्न में ली जाने वाली। ५. प्रतिश्रुता---पहले की हुई प्रतिज्ञा के कारण ली जाने वाली। ६. स्मारणिका-जन्मान्तरों की स्मृति होने पर ली जाने वाली। ७. रोगिणिका--रोग का निमित्त मिलने पर ली जाने वाली। ८. अनादृता-अनादर होने पर ली जाने वाली। ६. देवसंज्ञप्ति-देव के द्वारा प्रतिबुद्ध हो कर ली जाने वाली। १०. वत्सानुबन्धिका-दीक्षित होते हुए पुत्र के निमित्त से ली जाने वाली।
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