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ठाणं (स्थान)
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स्थान १०: सूत्र ७
कोधुप्पत्ति-पदं क्रोधोत्पत्ति-पदम्
क्रोधोत्पत्ति-पद ७. दसहि ठाणेहि कोधुप्पत्ती सिया, दशभिः स्थानः क्रोधोत्पत्तिः स्यात्, ७. दस कारणों से क्रोध की उत्पत्ति होती हैतं जहातदयथा
१. अमुक व्यक्ति ने मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, मणुषणाई मे सह-फरिस-रस-रूव- मनोज्ञान् मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्धान् रस, रूप और गंध का अपहरण किया गंधाई अवहरिसु। अपाहार्षीत् ।
था। अमणुष्णाई मे सहकरिस-रस- अमनोज्ञान में शब्द-स्पर्श-रस-रूप- २. अमुक व्यक्ति ने अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रूद-गंधाई उवहरिनु। गन्धान उपाहापात् ।
रस, रूप और गंध मुझे उपहृत किए हैं। मणुगणाई मे सह-फरिस-रस-व- मनोज्ञान मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्धान् ३. अमुक व्यक्ति मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, गंधाई अदहरई। आहाति।
रस, स्प और गंध का अपहरण करता अमण्गुणाई मे सद्द-फरिस-रस- अमनोज्ञान् मे शब्द-स्पर्श-रस-रूपरूव-गंधाइं उवहरति ! गन्धान् उपहरति।
४. अमुक व्यक्ति अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, मणुग्णाईने सह-फारिस-रस-रूब- मनोज्ञान् गे शब्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्धान् रस, रूप और गंध मुझे उपहृत करता है। गंधाई अवहरिस्तति । अपहरिप्यति।
५. अमुक व्यक्ति मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, अमजण्णाई मे सह- फरिस-रस- अमनोज्ञान् मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप- रस, रूप और गंध का अपहरण करेगा। रूव गंधाई° उपहरिस्सति। गन्धान उपहरिष्यति।।
६. अमुक व्यक्ति अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, मणुण्णाइं मे सह-'फरिस-रसा- मनोज्ञान् मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप-गन्धान् रस, रूप और गंध मुझे उपहृत करेगा। रूव-गंधाइं अवहरिस् वा अवहरइ अपाहार्षीत् वा अपहरति वा अपहरि- ७. अमुक व्यक्ति ने मेरे मनोज्ञ शब्द, वा अवहरिस्सति वा। प्यति वा।
स्पर्श, रस, रूप और गंध का अपहरण अमणुष्णाई मे राह- करिस-रस- अननोजान् मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप- किया था, करता है और करेगा। रुच-गंगई स्वहारसुवा उबहरलि गन्धान उपाहापत् वा उपहरति वा ८. अमुक व्यक्ति ने अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, वाउवह रिस्पति वा। अहरिष्यति वा।
रस, रूप और गंध गृझे उपहत किए हैं, एणुणामण्णाईनेशद- फरिस-रस- मनोज्ञाऽमनोज्ञान मे शब्द-स्पर्श-रस-रूप- करता है और करेगा। रूब-गंधाई अपहारसु वा अवहरति गन्धान अपाहार्षीत् वा अपहरति वा ६. अमुक व्यक्ति ने मनोज तथा अमनोज वा अवहरिस्तति वा, उवहरिसु असहरिष्यति वा, आहार्षीत् वा । शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का अपवा उवहरति वा उवहरिस्सति उपहरति वा उपहरिष्यति वा।
हरण किया है, करता है और करेगा तथा वा।
उपहुत किए हैं, करता है और करेगा। अहं च णं आयरिय-उवज्झा- अहं च आचार्योपाध्याययोः सम्यग् वर्ते, १०. मैं आचार्य और उपाध्याय के प्रति याणं सम्मं वद्रालि, ममं च णं मां च आचार्योपाध्यायौ मिथ्या विप्रति- सम्यग् वर्तन [अनुकूल व्यवहार करता आयरिय-उवझाया मिच्छं पन्नौ ।
हूं, परन्तु आचार्य और उपाध्याय मेरे विष्पडिवण्णा।
साथ मिथ्यावर्तन [प्रतिकूल व्यवहार] करते हैं।
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