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ठाणं (स्थान)
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स्थान १०: सूत्र ५-६
५. दस इंदियत्था अणागता पण्णत्ता, दश इन्द्रियार्थाः अनागताः प्रज्ञप्ताः, ५-इन्द्रियों के भविष्यत्कालीन विषय दस तं जहा
तद्यथादेसेणवि एगे सद्दाई सुणिस्संति। देशेनापि एके शब्दान् श्रोष्यन्ति । १. कोई शरीर के एक भाग से भी शब्द सव्वेणवि एगे सद्दाई सुणिस्संति। सर्वेणापि एके शब्दान् श्रोष्यन्ति । सुनेगा। 'देसेणवि एगे रूवाई पासिस्संति। देशेनापि एके रूपाणि द्रक्ष्यन्ति । २. कोई समस्त शरीर से भी शब्द सुनेगा। सज्वेणवि एगे रूबाइं पासिस्संति। सर्वेणापि एके रूपाणि द्रक्ष्यन्ति । ३. कोई शरीर के एक भाग से भी रूप देखणवि एगे गंधाई जिधिरसंति। देशेनापि एके गन्धान् घ्रास्यन्ति । देखेगा। सवेणापि एगे गंवाई जिपित्संति। सर्वगापि एके गन्धान प्रास्यन्ति । ४. कोई समस्त शरीर से भी न देखेगा। देसेणवि एगे रसाइं आसादेस्संति। देशेनापि एके रसान् आस्वदिष्यन्ति । ५. कोई शरीर के एक भाग से भी गंध सवेणवि एगे रसाई आसादेस्संति। सर्वेशापि एके रसान् आस्वदिष्यन्ति । सूंधेगा। देसेणनि एगे फासाई पडि- देशेनापि एके स्पर्शान
६. कोई समस्त शरीर से भी गंध सूबेगा। संवेदेस्संति। प्रतिसंवेदयिष्यन्ति !
७. कोई शरीर के एक भाग से भी रस सध्वनि एगे हासाई पडि- सर्वेगापि एके स्पर्शान्
चलेगा। संवेदेति । प्रतिसंवेदयिष्यन्ति।
5. कोई समस्त शरीर से भी रस चलेगा। ६.कोई शरीर के एक भाग से भी स्पों का संवेदन करेगा। १०. कोई समस्त शरीर से भी स्पों का संवेदन करेगा।
अच्छिणा-पोग्गल-चलण-पदं अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-पदम् ६. सहि ठाहि अच्छिण्णे पोग्गले दशभिः स्थानः अच्छिन्नः पुद्गलः चलेत, घलेज्जा, तं जहा
तद्यथाआहारिज्जमाणे वा चलेज्जा। आहियमाणो वा चलेत् । परिणामेज्जमाणे वा चलेजा। परिणम्यमानो वा चलेत । उत्सासिज्यमाणे वा चलेज्जा। उच्छ्वस्यमानो वा चलेत् । जिस्सलिज्जमाणे वा चलेज्जा। निःश्वस्यमानो वा चलेत् । वेदेज्जमाणे वा चलेज्जा। वेद्यमानो वा चलेत् । णिज्जरिज्जमाणे वा चलेज्जा। निर्जीर्यमाणो वा चलेत। विउविज्जमाणे वा चलेज्जा। विक्रयमाणो वा चलेत् । परियारिज्जमाणे वा चलेज्जा। परिचार्यमाणो वा चलेत्। जक्खाइ8 वा चलेज्जा। यक्षाविष्टो वा चलेत् । वातपरिगए वा चलेज्जा। वातपरिगतो वा चलेत् ।
अच्छिन्न-पुद्गल-चलन-पद ६. दस स्थानों से अच्छिन्न स्कंध से संलग्न ] पुदाल चलित होता है - १.आहार के रूप में लिया जाता हुआ पुद्गल चलित होता है। २. आहार के रूप में परिणत किया जाता हुआ पुद्गल चलित होता है। ३. उच्छ्वास के रूप में लिया जाता हआ पुद्गल चलित होता है। ४. निश्वास के रूप में लिया जाता हुआ पुद्गल चलित होता है। ५. वेद्यमान पुद्गल चलित होता है। ६. निर्जीयमान पुद्गल चलित होता है। ७. वैक्रिय शरीर के रूप में परिणममान पुद्गल चलित होता है।
परिचारणा संभोग] के समय पुद्गल चलित होता है। ६. शरीर में यक्ष के प्रविष्ट होने पर पुद्गल चलित होता है। १०. देहगत वायु या सामान्य वायु की प्रेरणा से पुद्गल चलित होता है।
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