________________
ठाणं (स्थान)
Jain Education International
दूध के पांच विकृतिगत -
१. दुग्धकांजिका - दूध की राब ।
२. दुग्धाटी - मावा होना या दही अथवा छाछ के साथ दूध को पकाने से पकने वाला पदार्थ ।
३. दुग्धावलेहिका - चावलों के आटे में पकाया हुआ दूध ।
४. दुग्धसारिका - द्राक्षा डालकर पकाया हुआ दूध ।
५. खीर
दही के पांच विकृतिगत ।
१. घोलबड़े ।
२. घोल - कपड़े से छना हुआ दही।
३. शिखरिणी - हाथ से मथकर चीनी डाला हुआ दही ।
४. करंबक - दही युक्त चावल ।
५. नमक युक्त दही का मट्ठा- इसमें सोगरी आदि न डालने पर भी वह विकृतिगत होता है, उनके डालने पर तो
होता है।
घृत के पांच विकृतिगत -
१. औषधपक्व घृत ।
२. घृतकिट्टिका - घृत का मैल ।
८७६
३. घृत पक्व - औषध के ऊपर तैरता हुआ घृत ।
४. निर्भञ्जन – पक्वान्न से जला हुआ घृत ।
५. विस्यंदन - दही की मलाई पर तैरते हुए घृत-बिन्दुओं से बना पदार्थ ।
तेल के पांच विकृतिगत -
१. तैलमलिका ।
२. तिलकुट्ट ।
३. निर्भञ्जन – पक्वान्न से जला हुआ तैल ।
४. तैल पक्व – औषध के ऊपर तैरता हुआ तेल ।
५. लाक्षा आदि द्रव्य में पकाया गया तैल ।
गुड के पांच विकृतिगत
१. आधा पका हुआ ईक्षु रस ।
२. गुड का पानी ।
स्थान : टि० १२
३. शक्कर ।
४. खांड |
५. पकाया हुआ गुड ।
अवगाहिम के पांच विकृतिगत
१. तवे पर घी डालकर एक रोटी पका ली और पुनः दूसरी बार उसमें घी डाले बिना दूसरी रोटी पकाई जाए वह
विकृतिगत है।
२. बिना नया घी और तेल डाले उसी कढ़ाई में तीन घाण निकल चुकने के पश्चात् चौथे घाण में जो पदार्थ निष्पन्न होते हैं वे विकृतिगत हैं ।
३. गुडधानिका आदि ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org