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________________ १. सांभोगिक विसांभोगिक ( सू० १) यहां संभोग का अर्थ है -- सम्बन्ध । समवायांग सूत्र में मुनियों के पारस्परिक सम्बन्ध बारह प्रकार के बतलाए गए हैं। जिनमें ये सम्बन्ध चालू होते हैं वे सांभोगिक और जिनके साथ इन सम्बन्धों का विच्छेद कर दिया जाता है वे विसां भोगिक कहलाते हैं। साधारण स्थिति में सांभोगिक को विसांभोगिक नहीं किया जा सकता। विशेष स्थिति उत्पन्न होने पर ही ऐसा किया जा सकता है । प्रस्तुत सूत्र में संभोग विच्छेद करने का एक ही कारण निर्दिष्ट है । वह है- प्रत्यनीकता - कर्तव्य से प्रतिकूल आचरण । २. (सू० ३ ) देखें - समवाओ | १ का टिप्पण | Jain Education International टिप्पणियाँ स्थान - ३. ( सू० १३ ) प्रस्तुत सूत्र में रोगोत्पत्ति के नौ कारण बतलाए हैं। उनमें से कुछएक की व्याख्या इस प्रकार है १. १. अच्चासणयाए - वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किए हैं-आदि रोग उत्पन्न होते हैं । २. अत्यशन से अति भोजन रोग उत्पन्न हो सकते हैं । २. अहियासणयाए वृत्तिकार ने इसके तीन अर्थ किए हैं १. अहितासन से -- पाषाण आदि अहितकर आसन पर बैठने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं । २. अहित अशन से - अहितकर भोजन करने से । ३. अभ्यसन से किए हुए भोजन के जीर्ण न होने पर पुनः भोजन करने से – 'अजीर्णे भुज्यते यत्तु तदध्यसनमुच्यते ।' ३. उसका सतत स्मरण ४. उसका उत्कीर्त्तन ५. उद्वेग अत्यासन से — निरन्तर बैठे रहने से। इससे मसे करने से। इससे अजीर्ण हो जाने के कारण अनेक ३. इन्द्रियार्थ - विकोपन - इसका अर्थ है - कामविकार । कामविकार से उन्माद आदि रोग हो उत्पन्न नहीं होते किन्तु वह व्यक्तिको मृत्यु के द्वार तक भी पहुंचा देता है । वृत्तिकार ने कामविकार के दस दोषों का क्रमश: उल्लेख किया है १. काम के प्रति अभिलाषा २. उसको प्राप्त करने की चिन्ता ६. प्रलाप ७. उन्माद 5. व्याधि ६. जड़ता, अकर्मण्यता १०. मृत्यु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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