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________________ ठाणं (स्थान) चरिदिय णिव्वत्तिते, पंचिदियणिव्वत्तिते । एवं चिण उवचिण बंध उदीर-वेद तह णिज्जरा चेव । पोग्गल - पदं ७३. णवपएसिया खंधा अणता पण्णत्ता जाव णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता । Jain Education International ८७४ चतुरिन्द्रियनिवर्तितान्, पञ्चेन्द्रियनिर्वर्तितान् । एवम् चय - उपचय-बन्ध उदीर - वेदा: तथा निर्जरा चैव । पुद्गल-पदम् नवप्रदेशिकाः स्कन्धाः अनन्ताः प्रज्ञप्ताः यावत् नवगुणरूक्षाः पुद्गलाः अनन्ताः प्रज्ञप्ता! | For Private & Personal Use Only स्थान : सूत्र ७३ ८. चतुरिन्द्रिय निर्वर्तित पुद्गलों का, ९. पञ्चेन्द्रिय निर्वर्तित पुद्गलों का। इसी प्रकार उनका उपचय, बन्धन, उदी रण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगे । पुद्गल-पद ७३. नवप्रदेशी स्कंध अनन्त हैं । नवप्रदेशावगाढपुद्गल अनन्त हैं । नौ समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं । नौ गुण का पुद्गल अनन्त हैं । इसी प्रकार शेष वर्ण तथा गंध, रस और स्पर्शो के नौ गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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