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________________ ठाणं (स्थान) ८७३ स्थान ६ : सूत्र ६८-७२ महरगह-पदं महाग्रह-पदम् महाग्रह-पद ६८. सुक्कस्स णं महागहस्स णव वीहीओ शुक्रस्य महाग्रहस्य नव वीथयः प्रज्ञप्ताः, ६८. महाग्रह शुक्र के नौ वीथियां हैं--- पण्णत्ताओ, तं जहा तद्यथाहयवीही, गयवीही, णागवीही, हयवीथिः, गजवीथिः, नागविथिः, १. हयवीथि, २. गजवीथि, वसहवीही, गोवीही, उरगवीही, वृषभवीथिः, गोवीथिः, उरगवीथिः, ३. नागवीथि, ४. वृषभवीथि, अयवीही, मियवीही, वेसाणर- अजवीथिः, मृगवीथिः, वैश्वानरवीथिः। ५. गोवीथि, ६. उरगवीथि, ७. अजवीथि, ८. मृगवीथि, वीही। ६. वैश्वानरवीथि। कम्म-पदं कर्म-पदम् कर्म-पद ६९. णवविध णोकसायवेयणिज्जे कम्मे नवविधं नोकषायवेदनीयं कर्म प्रज्ञप्तम्, ६६. नोकषायवेदनीय कर्म नौ प्रकार का हैपण्णत्ते, तं जहा तद्यथाइथिवेए, पुरिसवेए, णपुंसगवेए, स्त्रीवेदः, पुरुषवेद: नपुंसकवेदः, हास्य, १. स्त्रीवेद, २. पुरुषवेद, ३. नपुंसकवेद, हासे, रती, अरती, भये, सोगे, रतिः, अरतिः, भयं, शोकः, जुगुप्सा। ४. हास्य, ५. रति, ६. अरति, दुगछा। ७. भय, ८. शोक, ६. जुगुप्सा। कुलकोडि-पदं कुलकोटि-पदम् कुलकोटि-पद ७०. चरिदियाणं णव जाइ-कुलकोडि- चतुरिन्द्रियाणां नव जाति-कुलकोटि- ७०. चतुरिन्द्रिय जाति के योनि-प्रवाह में होने __ जोणिपमुह-सयसहस्सा पण्णत्ता। योनिप्रमुख-शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। वाली कुलकोटियां नौ लाख हैं। ७१. भुयगपरिसप्प-थलयर-पंचिदिय- भुजगपरिसर्प-स्थलचर-पञ्चेन्द्रिय- ७१. पञ्चेन्द्रिय तियञ्चयोनिक स्थलचर भुजग तिरिक्खजोणियाणं णव जाइ- तिर्यग्योनिकानां नव जाति-कुलकोटि- परिसर्प के योनिप्रवाह में होने वाली कुलकुलकोडि-जोणिपमुह-सयसहस्सा योनिप्रमुख-शतसहस्राणि प्रज्ञप्तानि । कोटियां नौ लाख हैं। पण्णत्ता। पावकम्म-पदं पापकर्म-पदम् पापकर्म-पद ७२. जीवा णवट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले जीवाः नवस्थाननिर्वतितान् पुद्गलान् ७२. जीवों ने नौ स्थानों से निर्वतित पुद्गलों पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति पापकर्मतया अचैषुः वा चिन्वन्ति वा का पापकर्म के रूप में चय किया है, करते वा चिणिस्संति वा, तं जहा- चेष्यन्ति वा, तद्यथा हैं और करेंगेपुढविकाइयणिव्वत्तिते, पृथ्वोकायिकनिर्वतितान्, १. पृथ्वीकायिक निर्ववर्तित पुद्गलों का, 'आउकाइयणिव्वत्तिते, अपकायिकनिर्वतितात्, २. अप्कायिक निर्वतित पुद्गलों का, तेउकाइयणिव्वत्तिते, तेजस्कायिकनिर्वतितान्, ३. तेजस्कायिक निर्वतित पुद्गलों का, वाउकाइयणिव्वत्तिते, वायुकायिकनिर्वतितान्, ४. वायुकायिक निर्वतित पुद्गलों का, वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, वनस्पतिकायिकनिर्वतितान्, ५. वनस्पतिकायिक निर्वर्तित पद्गलों का, बेइं दियणिव्वत्तिते, द्वीन्द्रिय निर्वतितान्, ६. द्वीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का, तेइंदियणिव्वत्तिते, त्रीन्द्रियनिर्वतितान्, ७. नीन्द्रिय निर्वतित पुद्गलों का, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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