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________________ Hi III H116 11 H13 ठाणं (स्थान) ८७२ स्थान : सूत्र ६२ संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. जस्सील-समायारो, १. यच्छील-समाचारः, अरहा तित्थंकरो महावीरो। अर्हन तीर्थंकरो महावीरः । तस्सील-समायारो, तच्छील-समाचारो, होति उ अरहा महापउमो॥ भविष्यति तु अर्हन् महापद्मः ।। णक्खत्त-पदं नक्षत्र-पदम् नक्षत्र-पद ६३. णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा नव नक्षत्राणि चन्द्रस्य पश्चाद्भागानि ६३. नौ नक्षत्र चन्द्रमा के पृष्ठभाग में होते हैं।" पण्णत्ता, तं जहा.प्रज्ञप्तानि, तद्यथा चन्द्रमा उनका पृष्ठभाग से भोग करता संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. अभिई समणो धणिट्टा, १. अभिजित् श्रवणः धनिष्ठा, १. अभिजित, २. श्रवण, ३. धनिष्ठा, रेवती अस्सिणि मग्गसिर पूसो। रेवतिः अश्विनी मृगशिराः पुष्यः । ४. रेवति, ५. अश्विनी, ६. मृगशिर, हत्थो चित्ता य तहा, हस्तः चित्रा च तथा, ७. पुष्य, ८.हस्त, चिना। पच्छंभागा णव हवंति ॥ पश्चाद्भागानि नव भवन्ति । विमाण-पदं विमान-पदम् विमान-पद ६४. आणत-पाणत-आरणच्चुतेसु कप्पेसु आनत-प्राणत-आरणाच्युतेषु कल्पेषु ६४. आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों विमाणा णव जोयणसयाई उड्ड विमानानि नव योजनशतानि ऊर्ध्वं में विमान नौ सौ योजन ऊंचे हैं। उच्चत्तेणं पण्णत्ता। उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि। थे। कुलगर-पदं कुलकर-पदम् कुलकर-पद ६५. विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणु- विमलवाहनः कुलकर: नव धनुशतानि ६५. कुलकर विमलवाहन नौ सौ धनुष्य ऊंचे सताई उड्ढें उच्चत्तेणं हुत्था। ऊर्ध्वमुच्चत्वेन अभवत् । तित्थगर-पदं तीर्थकर-पदम् तीर्थकर-पद ६६. उसभेणं अरहा कोसलिएणं इमीसे ऋषभेण अर्हता कौशलिकेन अस्यां ६६. कौशलिक अर्हत् ऋषभ ने इसी अवसर्पिणी ओसप्पिणीए णहि सागरोवम- अवप्पिण्यां नवभिः सागरोपमकोटि- के नौ कोटि-कोटि सागरोपम काल व्यतीत कोडाकोडीहि वीइक्कंताहि तित्थे कोटिभिः व्यतिक्रान्ताभिः तीर्थः होने पर तीर्थ का प्रवर्तन किया था। पवत्तिते। प्रवर्तितः। दीव-पदं द्वीप-पदम् ६७. धणदंत-लट्ठदंत-गूढदंत-सुद्धदंत- घनदन्त-लष्टदन्त-गूढदन्त-सुद्धदन्त- दीचा गं दीवा णव-णव जोयण- द्वीपाः द्वीपाः नव-नव योजनशतानि सताहं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः। द्वीप-पद ६७. घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त, शुद्धदन्त ये द्वीप नौ-सौ, नौ-सौ योजन लम्बे-चौड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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