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ठाणं (स्थान)
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स्थान ६ : सूत्र ६२ आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड५८ का निषेध किया है। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए शय्यानरपिण्ड और राजपिण्ड का निषेध करेंगे।
आर्यो ! मेरे नौ गण और ग्यारह गणधर हैं। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म के भी नौ गण और ग्यारह गणधर होंगे।
से जहाणामए अज्जो! मए सम- अथ यथानाम आर्य ! मया श्रमणानां णाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति निर्ग्रन्थानां शय्यातरपिण्डमिति वा वा रायपिडेति वा पडिसिद्धे। राजपिण्डमिति वा प्रतिषिद्धम । एवामेव महापउमेवि अरहा सम- एवमेव महापद्मोऽपि अर्हन् श्रमणानां णाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिडं निर्ग्रन्थानां शय्यातरपिण्डं वा राजपिण्ड वा रायपिडं वा पडिसेहिस्सति। वा प्रतिषेत्स्यति । से जहाणामए अज्जो! मम णव अथ यथानाम आर्य! मम नव गणा: गणा एगारस गणधरा। एवामेव एकादश गणधराः । एवमेव महापद्म महापउमस्सवि अरहतो णव गणा स्यापि अर्हम: नव गणाः एकादश एगारस गणधरा भविस्संति। गणधराः भविष्यन्ति । से जहाणामए अज्जो ! अहं तीसं अथ यथानामकं आर्य ! अह त्रिंशत् वासाइं अगारवासमझ बसित्ता वर्षाणि अगारवासमध्ये उषित्वा मुण्डो मुंडे भवित्ता अगाराओ भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजितः, अणगारियं पब्वइए, दुवालस द्वादश संवत्सराणि त्रयोदश पक्षान् संवच्छराइं तेरस पक्खा छउमत्थ- छद्मस्थपर्यायं प्राप्य त्रयोदशैः पक्षः परियागं पाउणित्ता तेरसहि पर्खेहि ऊनकानि त्रिशद् वर्षाणि केवलिपर्यायं ऊणगाई तीसं वासाई केवलि- प्राप्य, द्वाचत्वारिंशद् वर्षाणि श्रामण्यपरियागं पाउणित्ता, बायालीसं पर्यायं प्राप्य, द्विसप्ततिवर्षाणि सर्वायूः वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, पालयित्वा असिधं अबोधिषं अमुचं परिबावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता निरवासिषं सर्वदुःखानां अन्तमकार्षम्, सिज्झिस्सं 'बुझिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं। एवामेव महापउमेवि अरहा एवमेव महापद्मोपि अर्हन् त्रिंशद् । तीसं वासाई अगारवासमझे वर्षाणि अगारवासमध्ये उषित्वा मुण्डो । वसित्ता 'मुंडे भवित्ता अगाराओ भूत्वा अगारात् अनगारितां प्रव्रजिष्यति, अणगारियं पव्वाहिती, दुवालस द्वादश संवत्सराणि त्रयोदशपक्षान् संवच्छराई 'तेरसपक्खा छउमत्थ- छद्मस्थपर्यायं प्राप्य, त्रयोदशैः पक्षः परियागं पाउणित्ता, तेरसहि ऊनकानि त्रिंशद् वर्षाणि केवलिपर्यायं पक्खेहि ऊणगाई तीसं वासाइं प्राप्य, द्वाचत्वारिंशद् वर्षाणि श्रामण्यकेवलिपरियागं पाडणित्ता, बाया- पर्यायं प्राप्य, द्विसप्ततिवर्षाणि सर्वायुः लीसं वासाइं सामण्णपरियागं पालयित्वा सेत्स्यति भोत्स्यते मोक्ष्यति पाउणित्ता, बावत्तरिवासाइं परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानां अन्तं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती करिष्यति'बुझिहिती मुच्चिहिती परिणिव्वाइहिती सव्वदुक्खाणमंतं काहिती
आर्यो! मैं तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहकर, मुण्ड होकर, अगार से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुआ। मैंने बाहर वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय का पालन किया, तीस वर्षों में तेरह पक्ष कम काल तक केबली-पर्याय का पालन कियाइस प्रकार बयालीस वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन कर, बहत्तर वर्ष की पूर्णायु पालकर मैं सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत होऊंगा तथा समस्त दुःखों का अंत करूंगा। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहकर, मुण्ड होकर, अगार से अनगार अवस्था में प्रबजित होंगे। वे बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय का पालन करेंगे, तीस वर्षों में तेरह पक्ष कम काल तक केवली-पर्याय का पालन करेंगे-इस प्रकार बयालीस वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय का पालन कर, बहत्तर वर्ष की पूर्णायु पालकर वे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त होंगे तथा समस्त दुःखों का अन्त करेंगे।
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