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________________ स्थान ६ : सूत्र ४३-४५ ठाणं (स्थान) ८५६ आलोयणारिहे, 'पडिक्कमणारिहे, आलोचनाह, प्रतिक्रमणार्ह, तदुभयाहं, तदुभयारिहे, विवेगारिहे, विवेकाह, व्युत्सर्गार्ह, तपोर्ह, छेदार्ह, विउसन्गारिहे, तवारिहे, मूलाई, अनवस्थाप्याहम् । छयारिहे, मूलारिहे, अणवट्टप्पारिहे। १. आलोचना के योग्य, २. प्रतिक्रमण के योग्य, ३. आलोचना और प्रतिक्रमण-दोनों के योग्य, ४. विवेक के योग्य, ५. व्युत्सर्ग के योग्य, ६. तप के योग्य, ७. छेद के योग्य, ८. मूल के योग्य, ६. अनवस्थाप्य के योग्य। कूड-पदं कूट-पदम् कूट-पद ४३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पच्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे ४३. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण में दाहिणे णं भरहे दोहवेतड्ड णव भरते दीर्घवैताड्ये नव कूटानि भरत क्षेत्रवर्ती दीर्थ-वैताढ्य के नौ कूट कूडा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्तानि, तद्यथा--- संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. सिद्धे भरहे खंडग, १. सिद्धो भरत: खण्डकः, १. सिद्धायतन, २. भरत, माणी वेयर पुण्ण तिमिसगुहा।। माणिः वैतायड्यः पूर्णः तमिस्रगुहा।। ३. खण्डकप्रपातगुहा, ४. माणिभद्र, भरहे वेसमणे या, भरतो वैश्रमणश्च, ५. वैताव, ६. पूर्णभद्र, ७. तमिस्रगृहा, भरहे कूडाण णामाई॥ भरते कुटानां नामानि ।। ८. भरत, ६. वैश्रमण। ४४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे ४४. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण दाहिणे णं णिसहे वासहरपन्वते निषधे वर्षधरपर्वते नव कूटानि में निपधवर्षधर पर्वत के नौ कूट हैंणव कूडा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्तानि तद्यथा१. सिद्धे णिसहे हरिवस, १. सिद्धो निषधो हरिवर्ष, १. सिद्धायतन, २. निषध, ३. हरिवर्ष, विदेह हरि घिति असोतोया। विदेहः हीः धृतिश्च शीतोदा। ४. पूर्वविदेह, ५. हरि, ६. धृति, अवरविदेहे रुयगे, अपरविदेहः रुचको, ७. शीतोदा, ८. अपरविदेह, ६. रुचक । णिसहे कडाण णामाणि॥ निषधे कूटानां नामानि ।। ४५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरपन्वते णंदणवणे जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपर्वते नन्दनवने ४५. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के नन्दनणव कूडा पण्णत्ता, तं जहा- नव कूटानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा वन में नो कूट हैं१. गंदणे मंदरे चेव, १. नन्दनो मन्दरश्चैव, १. नन्दन, २. मन्दर, ३. निषध, णिसहे हेमवते रयय रुयए य। निषधो हैमवतः रजतः रुचकश्च । ४. हैमवत, ५. रजत, ६. रुचक, सागरचित्ते वइरे, सागरचित्रं वज्र, ७. सागरचित्र, ८. वज्र, ६. बल । बलकडे चेव बोद्धव्वे ॥ बलकूटं चैव बोद्धव्यम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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