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स्थान २ : सूत्र ७८-८४
ठाणं (स्थान) ७८. एवं चउवीसादंडओ
वेमाणियाणं।
जाव
यावत्
एवम्-चतुर्विंशतिदण्डकः वैमानिकानाम् ।
७८. इसी प्रकार वैमानिक तक के सभ
दण्डकों में दो दण्ड होते हैंअर्थदण्ड, अनर्थदण्ड।
दसण-पदं दर्शन-पदम्
दर्शन-पद ७६. दुविहे दंसणे पण्णत्ते, तं जहा- द्विविधं दर्शनं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- ७६. दर्शन दो प्रकार का हैसम्मईसणे चेव, सम्यग्दर्शनञ्चैव,
सम्यग्दर्शन। मिच्छादसणे चेव। मिथ्यादर्शनञ्चैव।
मिथ्यादर्शन। ८०. सम्मसणेदुविहे पण्णत्ते, तंजहा- सम्यग्दर्शनं द्विविधं प्रज्ञप्तम् तद्यथा- ८०. सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है - णिसग्गसम्मइंसणे चेव, निसर्गसम्यग्दर्शनञ्चैव,
निसर्गसम्यग्दर्शन-आन्तरिक दोषों की शुद्धि होने पर किसी बाह्य निमित्त के बिना सहज ही प्राप्त होनेवाला
सम्यग्दर्शन। अभिगमसम्मइंसणे चेव। अभिगमसम्यग्दर्शनञ्चैव।
अभिगमसम्यग्दर्शन-उपदेश आदि निमित्तों से प्राप्त होनेवाला
सम्यग्दर्शन। ५ ८१. णिसग्गसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, निसर्गसम्यग्दर्शनं द्विविधं प्रज्ञप्तम्, ८१. निसर्गसम्यग्दर्शन दो प्रकार का हैतं जहा
तद्यथापडिवाइ चेव, प्रतिपाती चैव,
प्रतिपाती-जो वापस चला जाए । अपडिवाइ चेव। अप्रतिपाती चैव।
अप्रतिपाती-जो वापस न जाए। ८२. अभिगमसम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, अभिगमसम्यग्दर्शनं द्विविधं प्रज्ञप्तम्, ८२. अभिगमसम्यग्दर्शन दो प्रकार का हैतं जहा
तद्यथापडिवाइचेव, प्रतिपाती चैव,
प्रतिपाती। अपडिवाइ चेव। अप्रतिपाती चैव।
अप्रतिपाती। ८३. मिच्छादसणे दुविहे पण्णत्ते, तं मिथ्यादर्शनं द्विविधं प्रज्ञप्तम्, ८३. मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है - जहा
तद्यथाअभिग्गहियमिच्छादसणे चेव, आभिग्रहिकमिथ्यादर्शनञ्चैव,
आभिग्नहिक-विपरीत सिद्धान्त के
आग्रह से उत्पन्न। अणभिग्गहियमिच्छादसणे चेव। अनाभिग्रहिकमिथ्यादर्शनञ्चैव । अनाभिग्रहिक-सहज या गुण-दोष की
परीक्षा किये बिना उत्पन्न ।" ८४. अभिग्गहियमिच्छादसणे दुविहे आभिग्रहिकमिथ्यादर्शनं द्विविधं ८४. आभिग्रहिकमिथ्यादर्शन दो प्रकार का हैपण्णत्ते, तं जहा
प्रज्ञप्तम्, तद्यथासपज्जवसिते चेव, सपर्यवसितञ्चैव,
सपर्यवसित-सान्त। अपज्जवसिते चेव। अपर्यवसितञ्चैव ।
अपर्यवसित-अनन्त ।"
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