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ठाणं (स्थान)
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स्थान २ : सूत्र ७४-७७
कालचक्क-पदं
कालचक्र-पदम् ७४. दो समाओ पण्णत्ताओ, तंजहा- द्वे समे प्रज्ञप्ते, तद्यथा
कालचक्र-पद ७४. समा (कालमर्यादा) दो प्रकार की
ओसप्पिणी समा चेव,
अविसर्पिणी समा चैव,
अवसर्पिणी समा-इसमें वस्तुओं के रूप, रस, गन्ध, आयु आदि का क्रमशः ह्रास होता है। उत्सर्पिणी समा- इसमें वस्तुओं के रूप, रस, गन्ध, आयु आदि का क्रमशः विकाम होता है।
उस्सप्पिणी समा चेव।
उत्सपिणी समा चैव।
उम्माय-पदं ७५. दुविहे उम्माए पण्णत्ते, तं जहा
जक्खाएसे चेव,
उन्माद-पदम् द्विविधः उन्मादः प्रज्ञप्तः, तद्यथायक्षावेशश्चैव,
मोहणिज्जस्स चेव कम्मस्स मोहनीयस्य चैव कर्मणः उदयेन। उदएणं।
तत्र योऽसौ यक्षावेश:, स सुखवेद्यतत्थ णं जे से जक्खाएसे, से णं तरकश्चैव सुखविमोच्यतरकश्चैव। सुहवेयतराए चेव सुहविमोयत- तत्र योऽसौ मोहनीयस्य कर्मणः उदयेन, राए चेव ।
स दुःखवेद्यतरकश्चैव दुःखविमोच्यतत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स तरकश्चैव । कम्मस्स उदएणं, से णं दुहवेयतराए चेव दुहविमोयतराए चेव।
उन्माद-पद ७५. उन्माद दो प्रकार का होता है
यक्षावेश-शरीर में यक्ष के आविष्ट होने से उत्पन्न। मोहनीय-कर्म के उदय से उत्पन्न । जो यक्षावेशजनित उन्माद है वह मोहजनित उन्माद की अपेक्षा सुख से भोगा जाने वाला और सुख से छूट सकने वाला होता है। जो मोहजनित उन्माद है वह यक्षावेशजनित उन्माद की अपेक्षा दुःख से भोगा जाने वाला और दुःख से छूट सकने वाला होता है।
दंड-पदं दण्ड-पदम्
दण्ड-पद ७६. दो दंडा पण्णत्ता, तं जहाद्वौ दण्डौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा
७६. दण्ड दो प्रकार का होता हैअट्ठादंडे चेव, अर्थदण्डश्चैव,
अर्थदण्ड। अणट्ठादंडे चेव। अनर्थदण्डश्चैव।
अनर्थदण्ड। ७७. णेरइयाणं दो दंडा पण्णत्ता, नैरयिकाणां द्वौ दण्डौ प्रज्ञप्तौ, तद्यथा- ७७. नैरयिकों के दो दण्ड होते हैं ---
तं जहाअट्ठादंडे य, अर्थदण्डश्च,
अर्थदण्ड । अणट्ठादंडे य। अनर्थदण्डश्च ।
अनर्थदण्ड।
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