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ठाणं (स्थान)
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स्थान::सूत्र ४
२. णो इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। २. नो स्त्रीणां कथां कथयिता २. वह केवल स्त्रियों में कथा नहीं करता भवति।
अथवा स्त्री की कथा नहीं करता। ३. णो इथिठाणाई सेवित्ता ३. नो स्त्रीस्थानानि सेविता ३. वह स्त्रियों के स्थानों का सेवन नहीं भवति । भवति।
करता। ४. णो इत्थीमिदियाई मणोहराई ४. नो स्त्रीणां इन्द्रियाणि मनोहराणि ४. वह स्त्रियों की मनोहर और मनोरम मणोरमाइं आलोइत्ता णिज्झाइत्ता मनोरमाणि आलोकयिता निध्याता इन्द्रियों को नहीं देखता और न उनका भवति। भवति।
अवधानपूर्वक चिन्तन करता है। ५. णोपणीतरसभोई [ भवति?]। ५. नो प्रणीतरसभोजी (भवति ? )। ५. वह प्रणीतरस का भोजन नहीं करता। ६. णो पाणभोयणस्स अतिमात- ६. नो पानभोजनस्य अतिमात्रं आहारक: ६. वह सदा पान-भोजन का अतिमात्रा में माहारए सया भवति। सदा भवति।
आहार नहीं करता। ७. णो पुव्वरतं पुज्वकीलियं ७. नो पूर्वरतं पूर्वक्रीडितं स्मर्त्ता ७. वह पूर्व अवस्था में आचीर्ण भोग तथा सरेत्ता भवति। भवति।
त्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करता। ८. णो सद्दाणुवाती णो रूवाणु- ८. नो शब्दानुपाती नो रूपानुपाती ८. बह शब्द, रूप और श्लोक [कीति] वाती णो सिलोगाणुवाती नो श्लोकानुपाती (भवति ? )। का अनुपाती नहीं होता-उनमें आसक्त [भवति ?] ।
नहीं होता। ६. णो सातसोक्खपडिबद्धे यावि ६.नो सातसौख्यप्रतिबद्धश्चापि । ६. वह सात और सुख में प्रतिबद्ध नहीं भवति । भवति।
होता। बंभचेरअगुत्ति-पदं ब्रह्मचर्यागुप्ति-पदम्
ब्रह्मचर्या गुप्ति-पद ४. णव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णत्ताओ, नव ब्रह्मचर्याऽगुप्तयः प्रज्ञप्ताः, ४. ब्रह्मचर्य की अगुप्तियां नौ हैंतं जहा
तद्यथा१. णो विवित्ताई सयणासणाई नो विविक्तानि शयनासनानि सेविता १. ब्रह्मचारी विविक्त शयन और आसन सेवित्ता भवतिभवति
का सेवन नहीं करता। स्त्री, पुरुष और इत्थीसंसत्ताई पसुसंसत्ताइं स्त्रीसंसक्तानि पशुसंसक्तानि पण्डक- नपुंसक सहित शयन और आसन का सेवन पंडगसंसत्ताई। संसक्तानि ।
करता है। २. इत्थीणं कहं कहेत्ता भवति। २. स्त्रीणां कथां कथियता । २. वह केवल स्त्रियों में कथा करता है भवति ।
अथवा स्त्री की कथा करता है। ३. इस्थिठाणाइं सेवित्ता भवति। ३. स्त्रीस्थानानि सेविता भवति । ३. वह स्त्रियों के स्थानों का सेवन करता
४. इत्थीणं इंदियाइं 'मणोहराई ४. स्त्रीणां इन्द्रियाणि मनोहराणि मणोरमाइं आलोइत्ता णिज्झाइत्ता मनोरमाणि आलोकयिता निध्याता भवति।
भवति । ५. पणीयरसभोई [भवति ?]। ५. प्रणीतरसभोजी (भवति ?)।।
४. बह स्त्रियों के मनोहर और मनोरम इन्द्रियों को देखता है और उनका अवधानपूर्वक चिन्तन करता है। ५. वह प्रणीतरस का भोजन करता है।
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