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________________ मल विसंभोग-पदं १. वह ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे णातिक्कमति, तं जहा - आयारियपडिणीयं, उवज्झायपरिणीयं, थेरपडिणीयं, कुलपडिणीयं, गणपडिणीयं, संघपडिणीयं, णापडणी, दंसणपडिणीयं, चरितपडिणीयं । बंभचेरअयण-पदं २. व बंभचेरा पण्णत्ता, तं जहासत्यपरिण्णा, लोगविजओ, • सोओस णिज्जं सम्मत्तं, आवंती, धूतं विमोहो, उवहाणसुयं, महापरिणा । इत्सिंसत्ताई णो पसंसत्ताइं जो पंडगसंसत्ताई । Jain Education International नवमं ठाणं संस्कृत छाया विसंभोग-पदम् नवभिः स्थानैः श्रमणः निर्ग्रन्थः साम्भोगिकं वैसंभोगिकं कुर्वन् नातिक्रामति, तद्यथा आचार्य प्रत्यनीकं उपाध्याय प्रत्यनीकं, स्थविरप्रत्यनीकं, गणप्रत्यनीकं, कुल प्रत्यनीकं, संघप्रत्यनीकं, दर्शनप्रत्यनीकं, ज्ञानप्रत्यनीकं, चरित्रप्रत्यनीकम् । बंभर गुत्ति-पदं ३. णव बंभचेरगुत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तद्यथा— १. विवित्ताइं सयणासणाई से वित्ता १. विविक्तानि शयनासनानि सेविता भवति ब्रह्मचर्याध्ययन-पदम् नव ब्रह्मचर्याणि प्रज्ञप्तानि तद्यथाशस्त्रपरिज्ञा, लोकविजयः, शीतोष्णीयं, सम्यक्त्वं, आवन्ती, धूतं विमोहः, उपधानश्रुतं महापरिज्ञा । ब्रह्मचर्य गुप्ति-पदम् नव ब्रह्मचर्यगुप्तयः प्रज्ञप्ताः, भवतिनो स्त्रीसंसक्तानि नो पशुसंसक्तानि नो पण्डकसंसक्तानि । For Private & Personal Use Only हिन्दी अनुवाद विसंभोग - पद १. नौ स्थानों से श्रमण-निर्ग्रन्थ सांभोगिक साधु को विसiभोग करता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता - १. आचार्य का प्रत्यनीक । २. उपाध्याय का प्रत्यनीक । ३. स्थविर का प्रत्यनीक । ४. कुल का प्रत्यनीक । ५. गण का प्रत्यनीक । ६. संघ का प्रत्यनीक । ७. ज्ञान का प्रत्यनीक | ८. दर्शन का प्रत्यनीक | ६. चारित्र का प्रत्यनीक । ब्रह्मचर्याध्ययन-पद २. ब्रह्मचर्य --- आचारांग सूत्र के नौ अध्यययन हैं— १. शस्त्रपरिज्ञा, २. लोकविजय, ४. सम्यक्त्व, ३. शीतोष्णीय, ५. आवन्ती-लोकसार, ६. धूत, ७. विमोह, ८. उपधानश्रुत, ६. महापरिज्ञा । ब्रह्मचर्य गुप्ति-पद ३. ब्रह्मचर्य की गुप्तियां नो हैं' १. ब्रह्मचारी विविक्त शयन और आसन का सेवन करता है । स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का सेवन नहीं करता । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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