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________________ ठाणं (स्थान) ८३६ स्थान : टि०२८ और यहां प्रस्तुत सुन में उसका मूल नाम न देकर केवल गोत्र से ही उसका उल्लेख किया गया हो। वृत्तिकार ने भी उसका गोत्र 'एणेय' माना है।' ५. श्वेत - यह आमलकल्पा नगरी का राजा था। उसकी रानी का नाम धारणी था। एक बार भगवान् जब आमलकल्पा नगरी में आए तब राजा और रानी दोनों प्रवचन सुनने गए। ६. शिव - यह हस्तिनापुर का राजा था। इसकी पटरानी का नाम धारणी और पुत्र का नाम शिवभद्र था। एक बार उसने सोचा- 'मेरा ऐश्वर्य प्रतिदिन बढ़ रहा है, यह पूर्वकृत अच्छे कर्मों का फल है । अतः मुझे इस जन्म में भी शुभ कर्मों का संचय करना चाहिए।' उसने सारी व्यवस्था कर अपने पुत्र को राज्यभार सौंप दिया और स्वयं 'दिशाप्रोक्षित तापस' बन गया। वह बेले बेले की तपस्या करता, आतापना लेता और जमीन पर पड़े पत्तों आदि से पारना करता। इस प्रकार घोर तपस्या करते-करते उसे 'विभंग ज्ञान' उत्पन्न हुआ। उसने सात समुद्र और सात द्वीप देखे और सोचा- 'मुझे दिव्यज्ञान उत्पन्न हुआ है। इनके आगे कोई द्वीप समुद्र नहीं है।' वह तत्काल नगर में आया और अनेक लोगों को अपनी उपलब्धि के विषय में बताया। उन दिनों भगवान् महावीर उसी नगर में समवसृत थे। गणधर गौतम भिक्षाचरी के लिए नगर में गए और उन्होंने तापस शिव द्वारा प्रचारित कथन सुना। वे भगवान् महावीर के पास आए और पूछा भगवान् ने असंख्य द्वीपसमुद्रों की बात कही। तापस शिव ने लोगों से भगवान् का यह कथन सुना। उसके मन में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा और विभ्रम पैदा हुआ। तत्क्षण उसका विभंग अज्ञान नष्ट हो गया। भगवान् महावीर के प्रति उसके मन में भक्ति उत्पन्न हुई। वह भगवान् के पास आया, निर्ग्रन्थ प्रवचन में अपना विश्वास प्रकट किया और प्रव्रजित हो गया तथा वह ग्यारह अंगों का अध्ययन कर मुक्त हो गया। * ७. उद्रावण -- भगवान् महावीर के समय में सिन्धु-सौवीर आदि १६ जनपदों, वीतभय आदि ३६३ नगरों में उद्रायण राज्य करता था । वह दस मुकुटबद्ध राजाओं का अधिपति और भगवान् महावीर का श्रावक था । राजा उद्रायण के पुत्र का नाम अभीचि (अभिजित् ) था। राजा का इस पर बहुत स्नेह था। 'राज्य में गृद्ध होकर यह दुर्गति में न चला जाए' – ऐसा सोचकर उद्रायण ने राज्य भार अपने पुत्र को न देकर अपने भानजे को दिया और स्वय भगवान् महावीर के पास प्रव्रजित हो गया । एक बार ऋषि उद्रायण उसी नगर में आया। अकस्मात् उसे रोग उत्पन्न हुआ । वैद्यों ने दही खाने के लिए कहा । महाराज केसी ने सोचा कि उद्रायण पुनः राज्य छीनने आया है। इस आशंका से उसने विषमिश्रित दही दिया और उद्रायण उसे खाते ही मर गया । उद्रायण में अनुराग रखने वाली किसी देवी ने वीतभय नगर पर पाषाण की वर्षा की। सारा नगर नष्ट हो गया । केवल उद्रायण का शय्यातर, जो एक कुंभकार था, वह बचा, शेष सारे लोग मारे गए।" ८. शङ्ख – इस राजा के विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं होती। मूलपाठगत विशेषण 'कासिवद्धणे' से यह जाना जा सकता है कि यह काशी जनपद के राजाओं की परम्परा में महत्त्वपूर्ण राजा था, जिसके समय में काशी जनपद का विकास हुआ। वृत्तिकार भी 'अयं च न प्रतीतः' ऐसा कहकर इस विषय का अपना अपरिचय व्यक्त करते हैं। उन्होंने एक तथ्य की ओर ध्यान खींचते हुए बताया है कि अन्तकृतदशा ( ६।१६ ) में ऐसा उल्लेख है कि भगवान् ने वाराणसी में राजा अलक को प्रव्रजित किया था। यदि वह कोई अपर है तो यह 'शंख' नाम नामान्तर है । १. स्थानांगवृत्ति पत्र ४०८ एणेयको गोनतः । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४०८ । ३. इसका अर्थ है कि प्रत्येक पारणा में जो पूर्व आदि दिशाओं में क्रमश: पानी आदि सींचकर फल-पुष्प आदि खाते हैं वैसे तापस। औपपातिक ( सू० १४ ) में वानप्रस्थ तापसों के अनेक प्रकार हैं। उनमें यह एक है । Jain Education International ४. भगवती ११।५७-८७ स्थानांगवृत्ति, पत्र ४०६ ५. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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