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________________ ठाणं (स्थान) ८३३ स्थान : टि०२१ ७. नित्यवादी – सांख्याभिमत सत्कार्यवाद के अनुसार पदार्थ कूटस्थ नित्य है । कारणरूप में प्रत्येक वस्तु का तत्व विद्यमान है । कोई भी नया पदार्थ उत्पन्न नहीं होता और कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता। केवल उनका आविर्भावतिरोभाव होता है ।" ८. असत् परलोकवादी - चार्वाकदर्शन मोक्ष या परलोक को स्वीकार नहीं करता । २१. आयुर्वेद (सू० २६) आयुर्वेद का अर्थ है - जीवन के उपक्रम और संरक्षण का ज्ञान; चिकित्सा शास्त्र । वह आठ प्रकार का है— १. कुमारभृत्य -बाल चिकित्सा शास्त्र । इसमें बालकों के पोषण और दूध सम्बन्धी दोषों का संशोधन तथा अन्य दोषजनित व्याधियों के उपशमन के उपाय निर्दिष्ट होते हैं । २. कायचिकित्सा - इसमें मध्य अंग से समाश्रित ज्वर, अतिसार, रक्तजनित शोथ, उन्माद, प्रमेह, कुष्ठ आदि रोगों के शमन के उपाय निर्दिष्ट होते हैं । ३. शालाक्य - मुंह के ऊपर के अंगों में ( कान, मुंह, नयन और नाक) व्याप्त रोगों के उपशमन का उपाय बताने वाला शास्त्र | ४. शल्य हत्या - शरीर के भीतर रहे हुए तृण, काठ, पाषाण, कण, लोह, लोष्ठ, अस्थि, नख आदि शल्यों के उद्धरण का शास्त्र । ५. जंगोली - इसे विष - विद्यातक शास्त्र या अगदतंत्र भी कहते हैं । सर्प आदि विषैले जीवों से इसे जाने पर उसकी चिकित्सा का निर्देश करनेवाला शास्त्र । ६. भूतविद्या --- भूत आदि के निग्रह के लिए विद्यातंत्र । देव, असुर, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, पितर, पिशाच, नाग आदि से आविष्ट चित्तवाले व्यक्तियों के उपद्रव को मिटाने के लिए शांतिकर्म, बलिकर्म आदि का विधान तथा ग्रहों की शांति का निर्देश करने वाला शास्त्र । ७. क्षारतंत्र – वीर्य पुष्टि के उपाय बताने वाला शास्त्र । सुश्रुत आदि ग्रन्थों में इसे वाजीकरण तंत्र कहा है ! ८. रसायन – इसका शाब्दिक अर्थ है- अमृत तुल्य रस की प्राप्ति । वय को स्थायित्व देने, आयुष्य को बढ़ाने, बुद्धि को वृद्धिगत करने तथा रोगों का अपहरण करने में समर्थ रसायनों का प्रतिपादन करने वाला शास्त्र । जयधवला में आयुर्वेद के आठ अंग इस प्रकार हैं-- १. शालाक्य २. कायचिकित्सा ३. भूततंत्र ४. शल्य ५. अगदतंत्र ६. रसायनतंत्र ७. बालरक्षा ८. बीजवर्द्धन । सुश्रुत में आयुर्वेद के आठ अंग ये हैं १. शल्य, २ . शालाक्य, ३. कायचिकित्सा, ४. भुतविद्या, ५. कौमारभृत्य, ६. अगदतंत्र, ७. रसायनतंत्र, ८. वाजीकरणतंत्र । प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित आठ नामों से ये कुछ भिन्न हैं; जंगोली के स्थान पर यहां अगदतंत्र' और क्षारतंत्र के स्थान 'वाजीकरण तंत्र' शब्द हैं। इनके क्रम में भी अन्तर है। १. सांख्यकारिका २. सत्त्वोपप्लवसिंह, पृष्ठ १ : पृथिव्यापस्तेजोवायुरितितत्त्वानि । तत्समुदाये शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञा ॥ ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४०६ । Jain Education International ४. कसा पाहुड, भाग १, पृष्ठ १४७ शालाक्यं कायचिकित्सा भूततंत्र शल्यमगदतंत्र रसायनतंत्र बालरक्षा बीजवर्द्धनमिति आयुर्वेदस्य अष्टाङ्गानि । ५. सुश्रुत, पृ० १: शल्यं शालाक्यं कार्याचिकित्सा भूतविद्या कौमारभृत्यमगदतंत्र रसायनतंत्र वाजीकरणतंत्रमिति । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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