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ठाणं (स्थान)
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तथा कहीं-कहीं आर्थिक भिन्नता भी है। वह इस प्रकार है
१. आचार संपदा -
१. चरणयुत, २. मदरहित, ३. अनियतवृत्ति, ४ अचंचल |
२. श्रुतसंपदा -
१. युग (युग प्रधानता ), २. परिचितसूत्र, ३. उत्सर्गी ४. उदात्तघोष ।
३. शरीर संपदा -
१. चतुरस्र, २. अकुटादि - परिपूर्ण कर्मेन्द्रियता, ३. बधिरत्ववर्जित- अविकल इन्द्रियता ४ तप: समर्थ ---- सभी प्रकार की तपस्या करने में समर्थ ।
४. वचन संपदा ----
१. वादी, २. मधुर वचन, ३. अनिश्रित वचन, ४. स्फुट वचन ।
५. वाचना संपदा -
६. मति संपदा -
१. योग्य वाचना -- शिष्य की योग्यता को जानकर उद्देशन, समुद्देशन देना ।
२. परिणत वाचना - पहले दी हुई वाचना को हृदयंगम कराकर आगे की वाचना देना ।
३. निर्यापयिता - वाचना का अन्त तक निर्वाह करता ।
४. निर्वाहक- पूर्वापर की संगति बिठाकर अर्थ का निर्वाह करना ।
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१. अवग्रह, २. ईहा, ३. अवाय, ४. धारणा ।
७. प्रयोगमति संपदा ----
१. शक्तिज्ञानवाद करने की अपनी शक्ति का ज्ञान ।
२. पुरुषज्ञान -- वादी के मत का ज्ञान ।
३. क्षेत्रज्ञान,
४. वस्तुज्ञान ।
८. संग्रह परिज्ञा
स्थान ८ : टि० १६
१. गणयोग्य उपग्रह - गण के निर्वाह योग्य क्षेत्र का संकलन ।
२. संसक्त संपद् व्यक्तियों को अनुरूप देशना देकर उन्हें आकृष्ट करना ।
३. स्वाध्याय संपद्यथा समय स्वाध्याय, प्रत्युत्प्रेक्षण, भिक्षाटन उपधिग्रहण की व्यवस्था करना ।
४. शिक्षा उपसंग्रह संपद् गुरु, प्रव्राजक, अध्यापक, रत्नाधिक आदि मुनियों का भार वहन करने, वैयावृत्य करने तथा विनय करने की शिक्षा देने में समर्थ । '
प्रवचन सारोद्धार के वृत्तिकार ने मतान्तरों का भी उल्लेख किया है। उन्होंने जो ये उपभेद किए हैं उनका आधार दशाgतस्कंध से कोई भिन्न ग्रन्थ रहा है।
१. प्रवचनसारोद्धार, गाथा ५४३-५४६
चरणजुओ मयरहियो अनिययवित्ती अचंचलो चैव । जुग परिचिय उस्सग्गी उदत्तघोसाइ विन्नेओ । चसो कुटाई बहिरत्तणवज्जो तवे सत्तो । वाई महुरत्त निस्सिय फुडवयणो संपया वयणेत्ति ॥ जोगो परियणवायण निज्जविया वायणाए निव्वहणे । ओह ईहावाया धारण भइसंपया चउरोति ॥ सत्ती पुरिसं खेत्तं वत्युं नाउं पयोजए वायं । गणजोगं संसतं सज्झाए सिक्खणं जाणे ॥
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