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________________ ८१५ स्थान ८ : सूत्र ६६-१०२ ठाणं (स्थान) २. अलंबुसा मिस्स केसी, पोंडरिगीय वारुणी। आसा सव्वगा चेव, सिरी हिरी चेव उत्तरतो॥ २. अलंबुषा मिश्रकेशी, पौंडरिकी च वारुणी। आशा सर्वगा चैव, श्रीः ह्रीः चैव उत्तरतः॥ १. अलंबुषा, २. मिश्रकेशी, ३. पौण्डरिकी ४. वारुणी, ५. आशा, ६. सर्वगा, ७. श्री, ८. ह्री। महत्तरिया-पदं महत्तरिका-पदम् महत्तरिका-पद ६६. अट्ठ अहेलोगवत्थव्वाओ दिसा- अष्ट अधोलोकवास्तव्याः दिशाकुमारी- ६६. अधोलोक में रहने वाली दिशाकुमारियों कुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, महत्तरिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा की महत्तरिकाएं आठ हैंतं जहासंगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. भोगकरा भोगवती, १. भोगकरा भोगवती, १. भोगंकरा, २. भोगवती, सुभोगा भोगमालिणी। सुभोगा भोगमालिनी। ३. सुभोगा, ४. भोगमालिनी, सुवच्छा वच्छमित्ता य, सुवत्सा वत्समित्रा च, ५. सुवत्सा, ६. वत्समित्रा, वारिसेणा बलाहगा॥ वारिषेणा बलाहका ।। ७. वारिषेणा, ८. बलाहका। १००. अट्ट उड्लोगवत्थव्वाओ दिसा- अष्ट ऊर्ध्वलोकवास्तव्याः दिशाकुमारी- १००. ऊंचे लोक में रहने वाली दिशाकुमारियों कुमारिमहत्तरियाओ पण्णत्ताओ, महत्तरिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा की महत्तरिकाएं आठ हैंतं जहा१. मेघंकरा मेघवती, १. मेघकरा मेघवती, १. मेघंकरा, २. मेघवती, सुमेघा मेघमालिणी। सुमेघा मेघमालिनी। ३. सुमेघा, ४. मेघमालिनी, तोयधारा विचित्ता य, तोयधारा विचित्रा च, ५. तोयधारा, ६. विचित्रा, पुप्फमाला अणिदिता॥ पुष्पमाला अनिन्दिता॥ ७. पुष्पमाला, ८. अनिन्दिता। कप्प-पदं कल्प-पदम् कल्प-पद १०१. अट्ट कप्पा तिरिय-मिस्सोव- अष्ट कल्पाः तिर्यग-मिश्रोपपन्नकाः १०१. आठ कल्प [देवलोक ] तिर्यग-मिथोप पन्नक [तिर्यञ्च और मनुष्य दोनों के वण्णगा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा उत्पन्न होने योग्य ] हैंसोहम्मे, 'ईसाणे, सणंकुमारे, सौधर्मः, ईशानः, सनत्कुमारः, माहेन्द्रः, १. सौधर्म, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, माहिंदे, बंभलोगे, लंतए, ब्रह्मलोकः, लान्तकः, महाशुक्रः, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्म, ६. लान्तक, महासुक्के, सहस्सारे। सहस्रारः। ७. महाशुक्र, ८. सहस्रार। १०२ एतेसु णं असु कप्पेसु अट्ठ इंदा एतेषु अष्टसु कल्पेषु अष्टेन्द्राः प्रज्ञप्ताः, १०२. इन आठ कल्पों में आठ इन्द्र हैंपण्णत्ता तं जहातद्यथा १. शक्र, २. ईशान, ३. सनत्कुमार, सक्के, 'ईसाणे, सणंकुमारे, शक्रः, ईशानः, सनत्कुमारः, माहेन्द्रः, ४. माहेन्द्र, ५. ब्रह्म, ६. लान्तक, माहिदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, ब्रह्मा, लांतकः, महाशुक्रः, सहस्रारः। ७. महाशुक्र, ८. सहस्रार। सहस्सारे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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