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________________ ठाणं (स्थान) ८१४ स्थान ८ : सूत्र ६७-६८ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्त- तत्र अष्ट दिशाकुमारीमहत्तरिकाः वहां महान् ऋद्धिवाली यावत् एक पल्योरियाओ महिड्डियाओ जाव पलि- महद्धिका: यावत् पल्योपमस्थितिकाः पम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारी ओवमट्टितीयाओ परिवसंति, तं परिवसन्ति, तद्यथा महत्तरिकाएं रहती हैंजहा२. समाहारा सुप्पतिण्णा, २. समाहारा सुप्रतिज्ञा, १. समाहारा, २. सुप्रतिज्ञा, सुप्पबुद्धा जसोहरा। सुप्रबुद्धा यशोधरा। ३. सुप्रबुद्धा, ४. यशोधरा, लच्छिवती सेसवती, लक्ष्मीवती शेषवती, ५. लक्ष्मीवती, ६. शेषवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा। चित्रगुप्ता वसुन्धरा ७.चित्रगुप्ता, ८. वसुन्धरा। ६७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य ९७. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पश्चिम पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पन्वते अट्ठ पाश्चात्ये रुचकवरे पर्वते अष्ट कूटानि में रुचकवर पर्वत के आठ कूट हैंकूडा पण्णत्ता, तं जहा प्रज्ञप्तानि, तद्यथा१. सोत्थिते य अमोहे य, १. स्वस्तिकश्च अमोहश्च, १. स्वस्तिक, २. अमोह, ३. हिमवान्, हिमवं मंदरे तहा। हिमवान् मन्दरस्तथा। ४. मन्दर, ५. रुचक, ६. रुचकोत्तम, रुअगे रुयगुत्तमे चंदे, रुचकः रुचकोत्तमः चन्द्रः, ७. चन्द्र, ८. सुदर्शन। अट्ठमे य सुदंसणे॥ अष्टमश्च सुदर्शनः॥ तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्त- तत्र अष्ट दिशाकुमारोमहत्तरिकाः वहां महान ऋद्धिवाली यावत् एक पल्योरियाओ महिडियाओ जाव पलि- महद्धिकाः यावत् पल्योपमस्थितिकाः पम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारी ओवमद्वितीयाओ परिवसंति, तं परिवसन्ति, तद्यथा महत्तरिकाएं रहती हैंजहा२. इलादेवी सुरादेवी, २. इलादेवी सुरादेवी, १. इलादेवी, २. सुरादेवी, ३. पृथ्वी, पुढवी पउमावती। पृथ्वी पद्मावती। ४. पद्मावती. ५. एकनासा, ६. नवमिका, एगणासा णवमिया, एकनाशा नवमिका, ७. सीता, ८. भद्रा। सीता भद्दा य अटुमा॥ शीता भद्रा च अष्टमी। १८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे ६८. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में उत्तरे णं रुअगवरे पव्वते अट्ठ कूडा रुचकवरे पर्वते अष्ट कूटानि प्रज्ञप्तानि, रुचकवर पर्वत के आठ कूट हैंपण्णत्ता, तं जहा.-- तद्यथा.. १. रयण-रयणुच्चए या, १. रत्नं रत्नोच्चयश्च, १. रत्न, २. रत्नोच्चय, ३. सर्वरत्न, सव्वरयण रयणसंचए चेव । सर्वरत्नं रत्नसंचयश्चैव । ४. रत्नसञ्चय, ५. विजय, ६. वैजयन्त, विजये य वेजयंते, विजयश्च वैजयन्तः, ७. जयन्त, ८. अपराजित । जयंते अपराजिते॥ जयन्तः अपराजितः ।। तत्थ णं अट्ठ दिसाकुमारिमहत्त- तत्र अष्ट दिशाकुमारीमहत्तरिकाः । वहां महान ऋद्धिवाली यावत् एक पल्योरियाओ महड्डियाओ जाव पलि- महद्धिकाः यावत् पल्योपमस्थितिकाः पम की स्थिति वाली आठ दिशाकुमारी ओवमट्रितीयाओ परिवसंति, तं परिवसन्ति, तद्यथा महत्तरिकाएं रहती हैंजहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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