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________________ ठाणं (स्थान) ८०० स्थान ८: सूत्र २७-३३ अग्गमहिसी-पदं अग्रमहिषी-पदम् अग्रमहिषी-पद २७. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरगणो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अष्टाग्र- २७. देवेन्द्र देवराज शक्र के आठ अग्रमहिषियां अटुग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं महिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाजहापउमा, सिवा, सची, अंजू, अमला, पद्मा, शिवा, शची, अजूः, १. पद्मा, २. शिवा, ३. शची, ४. अंज, अच्छरा, णवमिया, रोहिणी। अमला, अप्सराः, नवमिका, रोहिणी। ५. अमला, ६. अप्सरा, ७. नवमिका, ८. रोहिणी। २८.ईसाणस्सणं देविदस्स देवरणो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अष्टान- २८. देवेन्द्र देवराज ईशान के आठ अग्रअटुग्गम हिसीओ पण्णत्ताओ, तं महिष्य: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा महिषियां हैं कण्हा, कण्हराई, रामा, कृष्णा, कृष्णराजी, रामा, रामरक्षिता, १. कृष्णा, २. कृष्णराजी, ३. रामा, रामरविखता, वसू, वसुगुत्ता, वसूः, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा। ४. रामरक्षिता, ५. वसु, ६. वसुगुप्ता, वसुमित्ता, वसुंधरा। ७. वसुमित्रा, ८. वसुन्धरा। २६. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरणो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य २६. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज सोमस्स महारण्णो अटुग्गम हिसीओ महाराजस्य अष्टाग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः। सोम के आठ अग्रमहिपिया हैं । पण्णत्ताओ। ३०. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य वैश्रमणस्य ३०. देवेन्द्र देवराज ईशान के लोकपाल महा वेसमणस्स महारण्णो अट्रग्गमहि- महाराजस्य अष्टाग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः । राज वैश्रमण के आठ अग्रमहिषियां हैं। सीओ पण्णत्ताओ। महग्गह-पदं महाग्रह-पदम् महाग्रह-पद ३१. अट्ठ महग्गहा पण्णत्ता, तं जहा- अष्ट महाग्रहाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ३१. महाग्रह आठ हैं-- चंदे, सूरे, सुक्के, बुहे, बहस्सती, चन्द्रः, सूरः, शुक्रः, बुधः, १. चन्द्र, २. सूर्य, ३. शुक्र, ४. बुध, अंगारे, सणिचरे, केऊ। बृहस्पतिः, अङ्गारः, शनैश्चरः, केतुः ।। ५. बृहस्पति, ६. अंगार, ७. शनिश्चर, ८. केतु । तणवणस्सइ-पदं तृणवनस्पति-पदम् तृणवनस्पति-पद ३२. अट्ठविधा तणवणस्सतिकाइया अष्टविधाः तृणवनस्पतिकायिकाः ३२. तृणवनस्पतिकायिक आठ प्रकार के पण्णता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा होते हैंमूले, कंदे, खंधे, तया, साले, पवाले, मूलं, कन्दः, स्कन्धः, त्वक्, १. मूल, २. कंद, ३. स्कंद, ४. त्वक, पत्ते, पुप्फे। शाला, प्रवाल, पत्रं, पुष्पम् । ५. शाखा, ६. प्रवाल, ७. पत्र, ८. पुष्प । संजम-असंजम-पदं संयम-असंयम-पदम् संयम-असंयम-पद ३३. चरिदिया णं जीदा असमारभ- चतुरिन्द्रियान जीवान असमारभमाणस्य ३३. चतुरिन्द्रिय जीवों का आरम्भ नहीं करने माणस्स अविध संजमे कज्जति, अष्टविधः संयमः क्रियते, तदयथा वाले के आठ प्रकार का संयम होता हैतं जहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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