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ठाणं (स्थान)
स्थान २ : सूत्र ४०-४७
विज्जाचरण-पदं विद्याचरण-पदम्
विद्याचरण-पद ४०. दोहिं ठाणेहं संपण्णे अणगारे द्वाभ्यां स्थानाभ्यां सम्पन्नः अनगारः ४०. विद्या और चरण" (चरित्र) इन दो
अणादीयं अणवयग्गं दोहमद्धं अनादिकं अनवदनं दीर्धाद्ध्वानं स्थानों से सम्पन्न अनगार अनादि-अनंत चाउरंतं संसारकतारं वीति- चातुरन्तं संसारकान्तारं व्यतिव्रजेत, प्रलंब मार्गवाले तथा चार अन्तवाले वएज्जा, तं जहातद्यथा
संसार-रूपी कान्तार को पार कर जाता विज्जाए चेव, चरणेण चेव। विद्यया चैव, चरणेन चैव।
है-मुक्त हो जाता है।
आरंभ-परिग्गह-पदं आरम्भ-परिग्रह-पदम्
आरम्भ-परिग्रह-पद ४१. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो ४१. आरम्भ और परिग्रह–इन दो स्थानों को
णो केवलिपण्णत्तं धम्म लभेज्ज केवलिप्रज्ञप्तं धर्म लभेत श्रवणतया, जाने और छोडे बिना आत्मा केवलीसवणयाए, तं जहातद्यथा
प्रज्ञप्त धर्म को नहीं सुन पाता। आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव। ४२. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो ४२. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों के णो केवलं बोधि बुझज्जा, केवलां बोधि बुध्येत, तद्यथा
जाने और छोडे बिना आत्मा विशुद्धतं जहा
बोधि का अनुभव नहीं करता। आरंभे चेव, परिगहे चेव। आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव। ४३. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो केवलं ४३. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को
णो केवलं मुंडे भवित्ता अगारामो मुण्डो भूत्वा अगारात् अनगारितां जाने और छोडे बिना आत्मा मुंड होकर, अणगारियं पन्वइज्जा, तं जहा- प्रव्रजेत्, तद्यथा
घर को छोड़कर सम्पूर्ण अनगारिता प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव। आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव।
(साधुपन) को नहीं पाता। ४४. 'दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो केवलं ४४. आरम्भ और परिग्रह--इन दो स्थानों को
णो केवलं बंभचेरवासमावसेज्जा, ब्रह्मचर्यवासमावसेत्, तद्यथा- जाने और छोडे बिना आत्मा सम्पूर्ण तं जहा
ब्रह्मचर्यवास (आचार) को प्राप्त नहीं आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव ।
करता। ४५. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो केवलेन ४५. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को णो केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, संयमेन संयच्छेत्, तद्यथा
जाने और छोडे बिना आत्मा सम्पूर्ण तं जहा
संयम के द्वारा संयत नहीं होता । आरंभे चेव, परिग्गहे चेव। आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव। ४६. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को ४६. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो केवलेन जाने और छोडे बिना आत्मा सम्पूर्ण णो केवलेणं संवरेणं संवरेज्जा, संवरेण संवृणुयात्, तद्यथा
संवर के द्वारा संवत नहीं होता। तं जहा
आरंभे चेव, परिग्गहे चेव । आरम्भांश्चैव, परिग्रहांश्चैव । ४७. दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया द्वे स्थाने अपरिज्ञाय आत्मा नो केवलं ४७. आरम्भ और परिग्रह-इन दोस्थानों को
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