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ठाणं (स्थान)
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स्थान ८: आमुख
जनदर्शन ने तत्त्ववाद के क्षेत्र में ही अनेकान्त का प्रयोग नहीं किया है; आचार और व्यवस्था के क्षेत्र में भी उसका प्रयोग किया है। साधना अकेले में हो सकती है या संघबद्धता में इस प्रश्न पर जैन आचार्यों ने सर्वांगीण दृष्टि से विचार किया। उन्होंने संघ को बहुत महत्त्व दिया। साधना करने वाला संघ में दीक्षित होकर ही विकास करता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि वह अकेला रहकर साधना के उच्च शिखर पर पहुँच सके। किन्तु संघबद्धता साधना का एकमान विकल्प नहीं है । अकेलेपन में भी साधना की जा सकती है। किन्तु यह कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग है । अकेला रहकर वही साधना कर सकता है जिसे विशिष्ट योग्यता उपलब्ध हो। सूत्रकार ने एकाकी साधना की योग्यता के आठ मानदण्ड बतलाए हैं१ श्रद्धा
५ शक्ति २. सत्य
६ अकलहत्व ३ मेधा
७ धृति ४. बहुश्रुतत्व
८. वीर्यसम्पन्नता ये योग्यताऐं संघबद्धता में भी अपेक्षित हैं किन्तु एकाको साधना में इनकी अनिवार्यता है। संघबद्धता योग्यता के विकास के लिए है। उसका विकास हो जाए और साधक अकेले में साधना की अपेक्षा का अनुभव करे तो वह एकाकी विहार भी कर सकता है। इस प्रकार संघबद्धता और एकाको विहार दोनों को स्वीकृति देकर सूत्रकार ने यह प्रमाणित कर दिया कि आचार और व्यवस्था को अनेकान्त की कसौटी पर कस कर ही उनकी वास्तविकता को समझा जा सकता है।
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