SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 811
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ७७० स्थान ७ : टि०३६ दिया। राजा ने अपने दूत को विवाह का प्रस्ताव देकर मिथिला की ओर भेजा। ७. राजा जितशत्रु - एक बार चोक्षा नाम की परिव्राजिका मल्ली के भवन में आई। वह दानधर्म और शौचधर्म का निरूपण करती थी। मल्ली ने उसे पराजित कर दिया। परिव्राजिका कुपित होकर कांपिल्यपुर के राजा जितशत्रु की शरण में चली गई। राजा ने कहा-तुम देश-देशांतरों में घूमती हो। क्या कहीं तुमने हमारे अन्तःपुर की रानियों के सदृश रूप और लावण्य देखा है ? उसने कहा--महाराज! मल्ली कन्या के समक्ष आपकी सभी रानियां फीकी लगती हैं। ये सब उसके पद-नख से भी तुलनीय नहीं हैं। राजा मल्ली को पाने अधीर हो उठा। उसने भी अपना दूत वहां भेज दिया। इस प्रकार साकेत, चम्पा, श्रावस्ती, वाणारसी, हस्तिनागपुर और कांपिल्य के राजाओं के दूत मिथिला पहुंचे और अपने-अपने महाराजा के लिए मल्ली की याचना की । राजा कुम्भ ने उन्हें तिरस्कृत कर नगर से निकाल दिया। वे छहों दूत अपने-अपने स्वामी के पास आए और सारी घटना कह सुनाई। छहों राजाओं ने अत्यन्त कुपित होकर मिथिला की ओर प्रस्थान कर दिया। राजा कुंभ ने यह सुना और वह अपनी सेना को सज्जित कर सीमा पर जा बैठा। युद्ध प्रारंभ हुआ। छहों राजाओं की सेना के समक्ष राजा कुम्भ की सेना ठहर नहीं सकी। वह हार गया। तब मल्ली ने गुप्त रूप से छहों राजाओं के पास एक-एक व्यक्ति को भेजकर यह कहलाया कि-आपको मल्ली वरण करना चाहती है। छहों राजा नगर में आए और उसी उद्यान में ठहरे जहां मल्ली की प्रतिमा स्थित थी। मल्ली की प्रतिमा को देख वे अत्यन्त आसक्त हो गए और निनिमेष दृष्टि से उसे देखने लगे। मल्लीकुमारी वहां आई और प्रतिमा के शिर पर दिए ढक्कन को उठाया। उससे दुर्गन्ध फटने लगी। सभी नाक बंद कर दूर जा बैठे। मल्ली उनके समक्ष आकर बोली-'अरे! आपने नाक क्यों बंद कर डाला है?' उन्होंने कहा-'दुर्गन्ध फूट रही है।' मल्ली ने पुद्गलों के परिणाम की ओर उनका ध्यान आकृष्ट करते हुए उन्हें कामभोगों में आसक्त न होने के लिए प्रेरित किया। सभी को जातिस्मृति उत्पन्न हुई। सभी प्रव्रज्या के लिए तैयार हुए। मल्ली ने कहा-'आप अपने-अपने राज्य में जाकर राज्य की व्यवस्था कर मेरे पास आएं।' सबने यह स्वीकार किया। पश्चात् मल्लीकुमारी छहों राजाओं को राजा कुंभ के पास ले आई और उन्हें कुंभ के चरणों में प्रणत कर विजित किया। अन्त में 'पोष शुक्ला एकादशी को कुमारी मल्ली इन छहों राजाओं के साथ तथा नन्द और नंदिमिन आदि नागवंशीय कुमारों तथा तीन सौ पुरुषों और तीन सौ स्त्रियों के साथ दीक्षित हुई। वृत्तिकार का अभिमत है कि मल्ली को केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद उसने इन सबको दीक्षित किया था।' वृत्तिकार के इस अभिमत का आधार क्या है, वह अन्वेष्टव्य है । ३६. उपकरण की विशेषता (सू०८१) आचार्य और उपाध्याय के सात अतिशेष होते हैं, उनमें छठा है उपकरण-अतिशेष। इसका अर्थ है-अच्छे और उज्ज्वल वस्त्र आदि उपकरण रखना। यह पुष्ट परंपरा रही है कि आचार्य और रोगी साधु के वस्त्र बार-बार धोने चाहिए। क्योंकि आचार्य के वस्त्र न धोने से लोगों में अवज्ञा होती है और रोगी के वस्त्र न धोने से उसे अजीर्ण आदि रोग उत्पन्न होते हैं। देखें - ५।१६६ का टिप्पण। १. स्थानांगवृत्ति, पत्न ३८०-३८२ । २. वही, पत्र ३८२ : पोषशुद्धकादश्यामष्टमभक्तेनाश्विनीनक्षत्र : षडभिनपतिभिनन्दनन्दिमित्रादिभिर्नागवंशकुमारंस्तथा बाह्यपर्षदा पुरुषाणां विभिः शतैरभ्यन्तरपर्षदा च त्रिभिः शत: सह प्रवत्राज। ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३५२: उत्पन्न केवलश्च तान् प्रबाजित वानिति । ४. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३८४ : आयरियगिलाणाणं मइला मइला पुणोवि धोदति । मा हु गुरूण अवन्नो लोगम्मि अजीरणं इयरे ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy