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________________ ठाणं (स्थान) ७६६ स्थान ७ : टि० ३८ राजा का मन विस्मय से भर गया । उसका सारा अध्यवसाय मल्ली की ओर लग गया और उसने विवाह का प्रस्ताव देकर अपने दूत को मिथिला की ओर प्रस्थान कराया । ३. राजा चन्द्रच्छाय - चम्पा नगरी में चन्द्रच्छाय नाम का राजा राज्य करता था । वहाँ अर्हन्नक नाम का एक समुद्र-व्यापारी रहता था । एक बार वह लम्बी सामुद्रिक यात्रा से निवृत्त हो अपने नगर में आया और दो दिव्य कुंडल राजा को भेंट देने राजसभा में गया। राजा ने पूछा- तुम लोग अनेक-अनेक देशों में घूमते हो। वहाँ तुमने कहीं कुछ आश्चर्य देखा है ।' अर्हन्नक ने कहा- स्वामिन्! इस बार सामुद्रिक यात्रा में एक देव ने हमको धर्म से विचलित करने के लिए अनेक उपसर्ग उत्पन्न किए। हम धर्म पर अडिग रहे । देव ने विविध प्रकार से प्रयास किया, परन्तु वह हमें विचलित करने में असफल रहा तब उसने प्रसन्न होकर हमें दो कुंडल युगल दिये। हम जब मिथिला में गए तब एक कुंडल युगल हमने राजा कुंभ को उपहार रूप दिया। उसने अपने हाथों से मल्ली को वे कुंडल पहनाए । उस कन्या को देख हम अत्यन्त विस्मित हुए। ऐसा रूप और लावण्य हमने अन्यत्र कहीं नहीं देखा ।' राजा ने यह सुना और मल्ली कन्या को पाने के लिए छटपटा उठा। उसने अपने दूत को मिथिला की ओर प्रस्थान कराया । ४. राजा रुवमी - श्रावस्ती नगरी में रुक्मीराज नाम का राजा राज्य करता था । उसकी पुत्री का नाम सुबाहु था। एक बार उसके चातुर्मासिक मज्जनक महोत्सव के समय राजा ने नगर के चौराहे पर एक सुन्दर मंडप बनवाया और उस दिन वह वहीं बैठा रहा। कन्या सुबाहु सज्जित होकर अपने पिता को वन्दन करने वहाँ आई । राजा ने उसे गोद में बिठा लिया और उसके रूप- लावण्य को अत्यन्त गौर से देखने लगा। उसने वर्षधर से पूछा - 'क्या अन्य किसी कन्या का ऐसा मज्जनक महोत्सव कहीं देखा है ?' उसने कहा- 'राजन् ! जैसा मज्जनक महोत्सव मल्ली कन्या का देखा है, उसकी तुलना में यह कुछ नहीं है । उसकी रमणीयता का यह लक्षांश भी नहीं है।' राजा ने मल्ली का वरण करने के लिए अपने दूत के साथ विवाह का प्रस्ताव भेजा । दूत मिथिला की ओर चल पड़ा। ५. राजा शंख -- एक बार कन्या मल्ली के कुंडलों की संधि टूट गई। उसे जोड़ने के लिए महाराज कुंभक ने स्वर्णकारों को बुलाया और कुंडलों को ठीक करने के लिए कहा। स्वर्णकार उन्हें ठीक करने में असमर्थ रहे। राजा ने उन्हें देशनिकाला दे दिया । वे स्वर्णकार वाणारसी के राजा शंखराज की शरण में आए। राजा ने उनके देश- निष्कासन का कारण पूछा। उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। राजा ने पूछा - ' मल्ली कन्या कैसी है ?' उन्होंने उसके रूप और लावण्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। राजा मल्ली में आसक्त हो गया। उसने विवाह का प्रस्ताव देकर अपने दूत को मिथिला की ओर भेजा । ६. राजा अदीनशत्रु- एक बार मल्लीकुमारी के छोटे भाई मल्लदिन्न ने अपनी अन्तःपुर की चित्रशाला को चित्रकारों से चित्रित कराया। उन चित्रकारों में एक युवक चित्रकार था। उसे चित्रकला में विशेष लब्धि प्राप्त थी। एक बार उसने परदे के भीतर बैठी हुई मल्ली का अंगूठा देख लिया । उस अंगूठे के आकार के आधार पर उसने मल्ली का पूरा चित्र चित्रित कर डाला । कुमार मल्ल दिन्न अन्तःपुर की चित्रशाला में पहुंचा और विविध प्रकार के चित्रों को देख बिस्मय से भर गया। देखते-देखते उसने मल्ली का रूप देखा। उसे साक्षात् मल्लीकुमारी समझकर सोचा- 'अहो ! यह तो मेरी बड़ी बहिन मल्ली है। मैंने यहां आकर इसका अविनय किया है।' वह अत्यन्त लज्जित हो, एक ओर जाने लगा। जो धाय माता वहां उपस्थित थी, उसने कहा - ' कुमार ! यह तो आपके भगिनी का चित्र मात्र है।' यह सुनकर कुमार स्तंभित सा रह गया। अस्थान पर ऐसे चित्र को चित्रित करने के कारण उसने चित्रकार के वध का आदेश दे दिया। चित्रकारों का मन बहुत दुःखी हुआ । उन्होंने उसे छोड़ने के लिए कुमार से प्रार्थना की। किन्तु कुमार ने उसकी छेनी को तोड़कर उसे देश से निष्कासित कर डाला । वह युवा चित्रकार हस्तिनागपुर के राजा अदीनशत्रु की शरण में चला गया। राजा ने उसके आगमन का कारण पूछा। उसने सारी घटना कह सुनाई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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