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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ७ : टि०३८ ६. भूत, पिशाच आदि से ग्रस्त ७. संक्लेश ८. आहार का निरोध ६. श्वासोच्छवास का निरोध १. विष का सेवन २. वेदना ३. रक्तक्षय ४. भय ५. शस्त्र इनके अतिरिक्त १. हिम-अत्यधिक ठंड २. अग्नि ३. जल ये भी अपमत्यु के कारण होते हैं। ४. ऊँचे पर्वत से गिरना ५. ऊँचे वृक्ष से गिरना ६. रसों या विधाओं का अविधिपूर्वक सेवन । ३८. अर्हत्-मल्ली (सू० ७५) : आवश्यकनियुक्ति के अनुसार मल्लीनाथ के साथ तीन सौ पुरुष प्रवजित हुए थे।' स्थानांग में भी इनके साथ तीन सौ पुरुषों के प्रवजित होने का ही उल्लेख है।' स्थानांग की वृत्ति में अभयदेवसूरि ने मल्लिजिनः स्त्रीशतरपित्रिभिः'-मल्ली के साथ तीन सौ स्त्रियों के प्रवजित होने की भी बात स्वीकार की है। आवश्यकनिर्यक्ति गाथा २२४ की दीपिका में मल्लीनाथ के साथ तीन सौ पुरुष और तीन सौ स्त्रियों---छह सौ व्यक्तियों के प्रवजित होने का उल्लेख है।' प्रवचनसारोद्धार के वृत्तिकार का अभिमत भी यही है।' प्रस्तुत सूत्र में मल्ली के अतिरिक्त छह प्रधान व्यक्तियों के नाम गिनाए गए हैं। वे सब मल्ली के पूर्वभव के साथी थे और वे सब साथ-साथ दीक्षित भी हुए थे। प्रस्तुत भव में भी वे मल्ली के साथ दीक्षित होते हैं। वे मल्ली के साथ प्रव्रजित होने वाले तीन सौ पुरुषों में से ही थे। वे विशेष व्यक्ति थे तथा मल्ली के पूर्वभव के साथी थे, अतः उनका पृथक् उल्लेख किया गया है। उन सबका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है १. मल्ली-विदेह जनपद की राजधानी मिथिला में कुंभ नाम का राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम प्रभावती था। उसने एक पुत्री को जन्म दिया। माता-पिता ने उसका नाम मल्ली रखा। वह जब लगभग सौ वर्ष की हुई तब एक दिन उसने अवधिज्ञान से अपने पूर्वभव के छह मित्रों की उत्पत्ति के विषय में जाना और उनको प्रतिबोध देने के लिए एक उपाय ढूंढा। उसने अपने घर के उपवन में अपना सोने का एक पोला प्रतिविम्ब बनाया । उसके मस्तक में एक छिद्र रखा गया था। वह उस छिद्र में प्रतिदिन अपने भोजन का एक ग्रास डाल देती और उस छिद्र को ढंक देती। २. राजा प्रतिबुद्धि-साकेत नगरी में प्रतिबुद्धि राजा राज्य करता था। एक बार वह पद्मावती देवी द्वारा किये जाने वाले नागयज्ञ में भाग लेने गया और वहाँ अपूर्व श्रीदामगंडक (माला) को देखकर अतिविस्मित हुआ और अपने अमात्य से पूछा- क्या तुमने पहले कहीं ऐसी माला देखी है ?' अमात्य ने कहा-'देव ! विदेह राजा की कन्या मल्ली के पास जो दामगंडक है, उसके लक्षांश से भी यह तुलनीय नहीं होती।' राजा ने पुनः पूछा-'बताओ वह कैसी है ?' अमात्य ने कहा-'राजन् ! उस जैसी दूसरी है ही नहीं, तब भला मैं कैसे बताऊँ कि वह कैसी है ?' १. आवश्यकनियुक्ति, गाथा २२४ : पासो मल्लीअ तिहि तिहि सएहि । २. स्थानांग ३।५३० । ३. स्थानांगवृत्ति, पत्र १६८ । ४. आवश्यकनियुक्ति दीपिका, पन ६३ : मल्लिस्त्रिभिशते: स्त्री शतश्चेत्यनुक्तमपि ज्ञेयम्। ५. प्रवचनसारोदारवृत्ति, पत्र ६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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