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ठाणं (स्थान)
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स्थान ७:टि०४-७
४. (सू० ११)
सात सप्तकक१. स्थान सप्तकक २. नैषेधिकी सप्तकक ३. उच्चारप्रस्रवणविधि सप्तकक ४. शब्द सप्तकक ५. रूप सप्तकक ६. परक्रिया सप्तकक ७. अन्योन्यक्रिया सप्तकक ।
५. (सू० १२)
सूत्रकृताङ्ग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के अध्ययन पहले श्रुतस्कन्ध के अध्ययनों की अपेक्षा बड़े हैं, अत: उन्हें महान् अध्ययन कहे गए हैं। वे सात हैं
१. पुण्डरीक २. क्रियास्थान ३. आहारपरिज्ञा ४. प्रत्याख्यानक्रिया ५. अनाचारश्रुत ६. आर्द्र ककुमारीय ७. नालन्दीय।
६. भिक्षादत्तियों (सू० १३) भिक्षादत्तियों का क्रम यह है
प्रथम सप्तक में दूसरे सप्तक में तीसरे सप्तक में चौथे सप्तक में पांचवें सप्तक में छठे सप्तक में सातवें सप्तक में
- ७ भिक्षादत्तियां -----१४ भिक्षादत्तियां
-२१ भिक्षादत्तियां --२८ भिक्षादत्तियां -३५ भिक्षादत्तियां -४२ भिक्षादत्तियां ----४६ भिक्षादत्तियां
कुल १६६ भिक्षादतियां
७. चौड़े संस्थान वाली (सू० २२)
वत्तिकार ने 'पिंडलगपिठलसंठाणसंठियाओ' को पाठान्तर माना है। उनके अनुसार मूल पाठ है.---'छत्तातिच्छत्तसंठाणसंठियाओ'। इसका अर्थ है- एक छत्ते के बाद दूसरा छत्ता, इस प्रकार सात छत्ते हैं। उनमें नीचे का सबसे बड़ा है, ऊपर के क्रमशः छोटे हैं। सातों पृथ्वियों का भी यही आकार है । वे क्रमशः नीचे-नीचे हैं।'
१. स्थानांगवृत्ति, पत्न ३६६ ॥
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