SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 788
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ७४७ स्थान ७: सूत्र १२८ १२८. सक्कस्स णं देविदस्स देवरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य हरिनैग- १२८. देवेन्द्र देवराज शक्र के पदातिसेना के हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छाओ मेषिनः सप्त कक्षाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- अधिपति हरिनगमेषी के सात कक्षाएं हैंपण्णत्ताओ, तं जहा प्रथमा कक्षा एवं यथा चमरस्य तथा पहली यावत् सातवीं। पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स यावत् अच्युतस्य । इसी प्रकार अच्युत तक के सभी देवेन्द्रों के तहा जाव अच्चुतस्स। नानात्वं पादातानीकाधिपतीनाम । ते पदातिसेना के अधिपतियों के सात-सात णाणत्तं पायत्ताणियाधिपतीणं । ते पूर्वभणिता। देवपरिमाणं इदम्- कक्षाएं हैं। पुत्वभणिता। देवपरिमाणं इमं शक्रस्य चतुरशीतिः देवसहस्राणि, ईशा- उनके पदातिसेना के अधिपति भिन्न-भिन्न सक्कस्स चउरासीति देवसहस्सा, नस्य अशीतिः देवसहस्राणि यावत् हैं, जो पहले बताए जा चुके हैं। उनकी ईसाणस्स असीति देवसहस्साई अच्युतस्य लघुपराक्रमस्य दश देवसह- कक्षाओं का देव-परिमाण इस प्रकार हैजाव अच्चुतस्स लहुपरक्कमस्स स्राणि यावत् यावती षष्ठी कक्षा तद्वि- शक्र के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम दस देवसहस्सा जाव जावतिया गुणा सप्तमी कक्षा । कक्षा में ८४ हजार देव हैं। छट्ठा कच्छा तव्विगुणा सत्तमा देवाः अनया गाथया अनुगन्तव्याः- ईशान के पदातिसेना के अधिपति की कच्छा । प्रथम कक्षा में ८० हजार देव हैं। देवा इमाए गाथाए अणुगंतव्वा सनत्कुमार के पदातिसेना के अधिपति की १. चउरासीति असीति, १. चतुरशीतिरशीतिः, प्रथम कक्षा में ७२ हजार देव हैं। बावत्तरी सत्तरी य सट्ठी य।। द्विसप्ततिः सप्ततिश्च षष्ठिश्च । माहेन्द्र के पदातिसेना के अधिपति की पण्णा चत्तालीसा, पञ्चाशत् चत्वारिंशत्, प्रथम कक्षा में ७० हजार देव हैं। तीसा बीसा य दससहस्सा ॥ त्रिशत विंशतिश्च दशसहस्राणि ।। ब्रह्म के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में ६० हजार देव हैं। लान्तक के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में ५० हजार देव हैं। शुक्र के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में ४० हजार देव हैं। सहस्रार के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में ३० हजार देव हैं। प्राणत के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में २० हजार देव हैं। अच्युत के पदातिसेना के अधिपति की प्रथम कक्षा में १० हजार देव हैं। इन सब के शेष छहों कक्षाओं में पूर्ववत उत्तरोत्तर दुगुने-दुगुने देव हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy