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ठाणं (स्थान)
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स्थान ७ : सूत्र १२१-१२७ १२१. 'जधा सक्कस्स तहा सव्वेसि यथा शक्रस्य तथा सर्वेणां दाक्षिणात्यानां १२१. दक्षिण दिशा के देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार, दाहिणिल्लाणं जाव आरणस्स। यावत् आरणस्य ।
ब्रह्म, शुक्र, आनत और आरण के, शक्र की भांति, सात-सात सेनाएं और सात
सात सेनापति हैं। १२२. जधा ईसाणस्स तहा सव्वेसि यथा ईशानस्य तथा सर्वेणां औदीच्यानां १२२. उत्तर दिशा के देवेन्द्र देवराज माहेन्द्र,
लांतक, सहस्रार, प्राणत और अच्युत के उत्तरिल्लाणं जाव अच्चुतस्स। यावत् अच्युतस्य ।
ईशान की भांति, सात-सात सेनाएं और
सात-सात सेनापति हैं। १२३. चमरस्स णं असुरिदस्स असुर- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य १२३. असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के पदाति
कुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणिया- द्रुमस्य पादातानीकाधिपतेः सप्त कक्षाः सेना के अधिपति द्रुम के सात कक्षाएं हैंहिवतिस्स सत्त कच्छाओ प्रज्ञप्ताः, तद्यथापण्णत्ताओ, तं जहा
पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा। प्रथमा कक्षा यावत् सप्तमी कक्षा। पहली यावत् सातवीं। १२४. चमरस्स णं असुरिदस्स असुर- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य १२४. असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के पदाति
कुमाररण्णो दुमस्स पायत्ताणिया- द्रुमस्य पादातानीकाधिपतेः प्रथमायां सेना के अधिपति द्रुम की प्रथम कक्षा में धिपतिस्स पढमाए कच्छाए कक्षायां चतुःषष्ठि देवसहस्राणि ६४ हजार देव हैं। दूसरी कक्षा में उससे चउसट्ठि देवसहस्सा पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि ।
दुगुने–१२८००० देव हैं । तीसरी कक्षा जावतिया पढमा कच्छा तम्विगुणा यावती प्रथमा कक्षा तद्विगुणा द्वितीया में दूसरी से दुगुने–२५६००० देव हैं। दोच्चा कच्छा । जावतिया दोच्चा कक्षा । यावती द्वितीया कक्षा तद्वि गुणा इसी प्रकार सातवीं कक्षा में छठी से दुगुने कच्छा तस्विगुणा तच्चा कच्छा। तृतीया कक्षा । एवं यावत् यावती षष्ठी देव हैं। एवं जाव जावतिया छट्ठा कच्छा कक्षा तद्विगुणा सप्तमी कक्षा। तन्विगुणा सत्तमा कच्छा।
१२५. एवं बलिस्सवि, णवरं—महद्दुमे एवं बलेरपि, नवरं_महाद्रुमः षष्ठि- १२५. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बली के पदातिसट्ठिदेवसाहस्सिओ । सेसं तं चेव। देवसाहसिकः शेषं तच्चैव ।
सेना के अधिपति महाद्रुम की प्रथम कक्षा में ६० हजार देव हैं। अग्रिम कक्षाओं में
क्रमशः दुगुने-दुगुने हैं। १२६. धरणस्स एवं_चेव, णवरं धरणस्य एवम् चैव, नवरं-अष्टा- १२६. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के
पदातिसेना के अधिपति भद्रसेन की प्रथम अट्ठावीसं देवसहस्सा । सेसं तं चेव। विंशतिः देवसहस्राणि शेषं तच्चैव।
कक्षा में २८ हजार देव हैं। अग्रिम कक्षाओं
में क्रमशः दुगुने-दुगुने हैं। १२७. जधा धरणस्स एवं जाव महा- यथा धरणस्य एवं यावत महाघोषस्य, १२७. भूतानन्द से महाघोष तक के सभी इन्द्रों
घोसस्स, णवरं-पायत्ताणियाधिपती नवरं_पादातानिकाधिपतयः अन्ये, ते के पदाति सेनापतियों की कक्षाओं की अण्णे, ते पुव्वभणिता। पूर्वभणिताः।
देव-संख्या धरण की भांति ज्ञातव्य है। उनके सेनापति दक्षिण और उत्तर दिशा के भेद से भिन्न-भिन्न हैं, जो पहले बताए जा चुके हैं।
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