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ठाणं (स्थान)
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स्थान ७ : सूत्र १२६-१३१
वयणविकप्प-पदं वचनविकल्प-पदम्
वचनविकल्प-पद १२६. सत्तविहे वयणविकप्पे पण्णत्ते, तं सप्तविधः वचनविकल्पः प्रज्ञप्तः, १२६. वचन के सात विकल्प हैंजहातद्यथा
१. आलाप-थोड़ा बोलना। आलावे, अणालावे, उल्लावे, आलापः, अनालापः, उल्लापः, अनुल्लापः, २. अनालाप-कुत्सित आलाप करना। अणुल्लावे, संलावे, पलावे, संलापः, प्रलापः, विप्रलापः।
३. उल्लाप-काकु-ध्वनिविकार के द्वारा विप्पलावे।
बोलना। ४. अनुल्लाप-कुत्सित ध्वनिविकार के द्वारा बोलना। ५. संलाप-परस्पर भाषण करना । ६. प्रलाप–निरर्थक बोलना। ७. विप्रलाप–विरुद्ध वचन बोलना।
विणय-पदं विनय-पदम्
विनय-पद १३०. सत्तविहे विणए पण्णत्ते, तं जहा- सप्तविधः विनयः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १३०. विनय के सात प्रकार हैंणाणविणए, दंसणविणए, ज्ञानविनयः, दर्शनविनयः, चरित्रविनयः, ।
१. ज्ञानविनय, २. दर्शनविनय, चरित्तविणए, मणविणए, मनोविनयः, वागविनयः, कायविनयः,
३. चरित्नविनय, ४. मनविनय
अकुशल मन का निरोध और कुशल की वइविणए, कायविणए, लोकोपचारविनयः।
प्रवृत्ति, ५. वचनविनय-अकुशल वचन लोगोवयारविणए।
का निरोध और कुशल की प्रवृत्ति। ६. कायविनय-अकुशल काय का निरोध और कुशल की प्रवृत्ति। ७. लोकोपचारविनय-लोक-व्यवहार के
अनुसार विनय करना। १३१. पसत्थमणविणए सत्तविधे पण्णत्ते, प्रशस्तमनोविनयः सप्तविधः प्रज्ञप्तः, १३१. प्रशस्त मनविनय के सात प्रकार हैंतं जहातद्यथा
१. अपापक---मन को शुभ चिन्तन में
प्रवृत्त करना। अपावए, असावज्जे, अकिरिए, अपापकः, असावद्यः, अक्रियः, निरुप
२.असावद्य-मन को चोरी आदि गहित णिरुवक्केसे, अणण्हयकरे, क्लेशः, अनास्नवकरः, अक्षयिकरः, कर्मों में न लगाना। अच्छविकरे, अभूताभिसंकणे।
३. अक्रिय-मन को कायिकी, आधिअभूताभिशङ्कनः ।
करणिकी आदि क्रियाओं में प्रवृत्त न करना। ४. निरुपक्लेश-मन को शोक, चिन्ता आदि में प्रवृत्त न करना। ५. अनास्नवकर--मन को प्राणातिपात आदि पांच आश्रवों में प्रवृत्त न करना। ६. अक्षयिकर-मन को प्राणियों को व्यथित करने में न लगाना। ७. अभूताभिशकुन-मन को अभयंकर बनाना।
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