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________________ ठाणं (स्थान) ७३७ स्थान ७: सूत्र ७६-८१ धम्मत्थिकायं, 'अधम्मत्थिकायं, धर्मास्तिकायं, अधर्मास्तिकायं, १. धर्मास्तिकाय, २. अधर्मास्तिकाय, आगासत्थिकायं, आकाशास्तिकायं, ३. आकाशास्तिकाय, ४. शरीरमुक्तजीव, जीवं असरीरपडिबद्धं, जीवं अशरीरप्रतिबद्धं, परमाणुपुद्गलं, ५. परमाणुपुद्गल, ६. शब्द, ७. गंध । परमाणुपोग्गलं, सई, गंधं। शब्द, गन्धम्। महावीर-पदं महावीर-पदम् महावीर-पद ७६. समणे भगवं महावीरे वइरोस- श्रमणः भगवान् महावीरः वज्रर्षभना- ७६. श्रमण भगवान् महावीर वज्रऋषभनाराच भणारायसंघयणे समचउरंस- राचसंहननः समचतुरस्र-संस्थान-संस्थितः संघयण और समनतुरस्र संस्थान से संस्थित संठाण-संठिते सत्त रयणीओ उड्ड सप्त रत्नी: ऊर्ध्वं उच्चत्वेन अभवत्। थे। उनकी ऊंचाई सात रत्नि की थी। उच्चत्तेणं हुत्था। विकथा-पद ८०. विकथाएं सात हैं--- विकहा-पदं विकथा-पदम् ८०. सत्त विकहाओ पण्णत्ताओ, तं सप्त विकथाः, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- जहाइत्थिकहा, भत्तकहा, देसकहा, स्त्रीकथा, भक्तकथा, देशकथा, रायकहा, मिउकालुणिया, राजकथा, मृदुकारुणिकी, दर्शनभेदिनी, दसणभेयणी, चरित्तभेयणी। चरित्रभेदिनी। १. स्त्रीकथा, २. भक्तकथा, ३. देशकथा, ४. राज्यकथा, ५. मृदुकारुणिकीवियोग के समय करुणरस प्रधान वार्ता । ६. दर्शनभेदिनी-सम्यकदर्शन का विनाश करने वाली वार्ता । ७. चारित्रभेदिनीचारित्र का विनाश करने वाली वार्ता । आयरिय-उवज्झाय-अइसेस-पदं आचार्य-उपाध्याय-अतिशेष पदम् । आचार्य-उपाध्याय-अतिशेष-पद ८१. आयरिय-उवज्झायस्स णं गणंसि आचार्योपाध्यायस्य गणे सप्तातिशेषाः ८१. गण में आचार्य और उपाध्याय के सात सत्त अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा अतिशेष होते हैं१. आयरिय-उवझाए अंतो १. आचार्योपाध्यायः अन्त: उपाश्रयस्य । १. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय में उवस्सयस्स पाए णिगिझिय- पादौ निगृह्य-निगृह्य प्रस्फोटयन् वा पैरों की धूलि को [दूसरों पर न गिरे णिगिझिय पप्फोडेमाणे वा प्रमार्जयन् वा नातिकामति। वैसे] झाड़ते हुए, प्रमाणित करते हुए पमज्जमाणे वा णातिक्कमति।। आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते। २. 'आयरिय-उवज्झाए अंतो २. आचार्योपाध्यायः अन्तः उपाश्रयस्य । २. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय में उवस्सयस्स उच्चारपासवणं उच्चारप्रश्रवणं विवेचयन् वा विशोधयन् उच्चार-प्रस्रवण का व्युत्सर्ग और विशोविगिचमाणे वा विसोधेमाणे वा वा नातिकामति । धन करते हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं णातिक्कमति। करते। ३. आयरिय-उवज्झाए पभू इच्छा ३. आचार्योपाध्यायः प्रभुः इच्छा वैया- ३. आचार्य और उपाध्याय की इच्छा पर वेयावडियं करेज्जा, इच्छा णो वृत्त्यं कुर्यात्, इच्छा नो कुर्यात् । निर्भर है कि वे किसी साधु की सेवा करें करेज्जा। या न करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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