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________________ ठाणं (स्थान) संग्रहणी - गाहा १. अज्भवसाण - णिभित्ते, आहारे वेणा पराघाते । फासे आणापाण सत्तविधं भिज्जए आउं ॥ जीव-पदं ७३. सत्तविधा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहापुढविकाइया, आउकाइया, वाउकाइया, उकाइया, वणस्सतिकाइया, तसकाइया, अकाइया । अहवा—सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहाकण्हलेसा 'णीललेसा काउलेसा तेउलेसा म्ह लेसा सुक्कलेसा अलेसा । बंभदत्त-पदं ७४. बंभदत्ते णं राया चाउरंतचक्कवट्टी सत्त धणूई उड्ड उच्चतेणं, सत्त य वाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा अधेसत्तमाए पुढवीए अप्पतिट्ठाणे णरए इयत्ताए उववण्णे | मल्ली - पव्वज्जा-पदं ७५. मल्ली णं अरहा अप्पसत्तमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, तं जहा Jain Education International ७३५ पृथिवीकायिकाः, अपकायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, वसकायिकाः, अकायिकाः । Roaster अथवा सप्तविधः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा कृष्णलेश्याः नीललेश्याः कापोतलेश्याः तेजोलेश्याः पद्मलेश्या: शुक्ललेश्या: अलेश्याः । संग्रहणी - गाथा १. अध्यवसान - निमित्ते, आहारो वेदना पराघातः । स्पर्शः आनापानौ, सप्तविधं भिद्यतेः आयुः ॥ जीव-पदम् सप्तविधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा ब्रह्मदत्त-पदम् ब्रह्मदत्तः राजा चातुरन्तचक्रवर्ती सप्त धनूंषि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन, सप्त च वर्ष - शतानि परमायुः पालयित्वा कालमासे कालं कृत्वा अधः सप्तमायां पृथिव्यां अप्रतिष्ठाने नरके नैरयिकत्वेन उपपन्नः । मल्ली-प्रव्रज्या-पदम् मल्ली अर्हन् आत्मसप्तमः मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां प्रव्रजितः, तद्यथा For Private & Personal Use Only स्थान ७ : सूत्र ७३-७५ १. अध्यवसान - राग, स्नेह और भय आदि की तीव्रता । २. निमित्त शस्त्रप्रयोग आदि । ३. आहार - आहार की न्यूनाधिकता । ४. वेदना -- नयन आदि की तीव्रतम वेदना ५. पराघात गढ़े आदि में गिरना । ६. स्पर्श सांप आदि का स्पर्श । ७. आन अपान - उच्छ्वास - निःश्वास का निरोध । जीव- पद ७३. सभी जीव सात प्रकार के हैं १. पृथ्वीकायिक, २. अष्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वालुकायिक, ५. वनस्पतिकायिक, ६. वसकायिक, ७. अकायिक । अथवा सभी जीव सात प्रकार के हैं--- १. कृष्णलेश्या वाले, २. नीललेश्या वाले, ३. कापोतलेच्या वाले, ४. तेजस् लेश्या वाले, ५. पद्मलेश्या वाले, ६. शुक्ललेश्या वाले, ७. अलेश्य । ब्रह्मदत्त-पद ७४. चतुरंत चक्रवर्ती राजा ब्रह्मदत्त की ऊंचाई सात धनुष्य की थी। वे सात सौ वर्षों की उत्कृष्ट आयु का पालन कर, मरणकाल में मरकर, निचली सातवीं पृथ्वी के अप्रतिष्ठान नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न हुए । मल्ली - प्रव्रज्या पद ७५ अर्हत् मल्ली", अपने सहित सात राजाओं के साथ, मुण्डित होकर अगार से अनगार अवस्था में प्रव्रजित हुए www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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