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स्थान ७ : सूत्र ७०-७२
ठाणं (स्थान)
७३४ अकाले वरिसइ, काले ण वरिसइ, अकाले वर्षति, काले न वर्षति, असाधू पुज्जंति, साधू ण पुज्जंति, असाधवः पूज्यन्ते, साधवो न पूज्यन्ते, गुरूहि जणो मिच्छं पडिवण्णो, गुरुभिः जनः मिथ्या प्रतिपन्नः, मणोदुहता, वइदुहता। मनोदुःखता, वाग्दुःखता।
१. अकाल में वर्षा होती है। २, समय पर वर्षा नहीं होती। ३. असाधुओं की पूजा होती है। ४. साधुओं की पूजा नहीं होती। ५. व्यक्ति गुरुजनों के प्रति मिथ्याअविनयपूर्ण व्यवहार करता है। ६. मन-सम्बन्धी दुःख होता है। ७. वचन-सम्बन्धी दुःख होता है।
सुसमा-लक्खण-पदं सुषमा-लक्षण-पदम्
सुषमा-लक्षण-पद ७०. सहि ठाणेहि ओगाढं सुसमं सप्तभिः स्थान: अवगाढां सुषमा ७०. सात स्थानों से सुषमाकाल की अवस्थिति जाणेज्जा, तं जहाजानीयात्, तद्यथा
जानी जाती हैअकाले ण वरिसइ, काले वरिसइ, अकाले न वर्षति, काले वर्षति, १. अकाल में वर्षा नहीं होती। असाधू ण पुज्जंति, साधू पुज्जति असाधवो न पूज्यन्ते, साधवः पूज्यन्ते, २. समय पर वर्षा होती है। गुरूहि जणो सम्म पडिवण्णो, गुरुभिः जनः सम्यक् प्रतिपन्न:, ३. असाधुओं की पूजा नहीं होती। मणोसुहता, वइसुहता। मनःसुखता, वाक्सुखता।
४. साधुओं की पूजा होती है। ५. व्यक्ति गुरुजनों के प्रति मिथ्या व्यवहार नहीं करता। ६. मन-सम्बन्धी सुख होता है। ७. वचन-सम्बन्धी सुख होता है।
जीव-पदम्
जीव-पदं
जीव-पद ७१. सत्तविहा संसारसमावण्णगा जीवा सप्तविधाः संसारसमापन्नकाः जीवाः ७१. संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के पण्णत्ता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा
होते हैं--- णेरइया, तिरिक्खजोणिया, नैरयिकाः, तिर्यग्योनिकाः,
१. नैरयिक, २. तिर्यञ्चयोनिक, तिरिक्खजोणिणीओ, मणुस्सा, तिर्यग्योनिक्यः, मनुष्याः,
३. तिर्यञ्चयोनिकी, ४. मनुष्य, मणुस्सीओ, देवा, देवीओ। मानुष्यः, देवाः, देव्यः ।
५. मानुषी, ६. देव, ७. देवी।
आउभेद-पदं आयुर्भेद-पदम्
आयुर्भेद-पद ७२. सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते,तं जहा- सप्तविधः आयुर्भेदः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ७२. आयुष्य-भेद" [अकालमृत्यु] के सात
कारण हैं
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