________________
७३३
जहा
ठाणं (स्थान)
स्थान ७ : सूत्र ६६-६६ १. मतंगया य भिंगा, १. मदाङ्गकाश्च भृङ्गा,
१. मदाङ्गक, २. भृङ्ग, ३. चित्राङ्ग, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा। श्चित्राङ्गाश्चैव भवन्ति चित्र रसाः । ४. चित्ररस, ५. मण्यङ्ग, ६. अनग्नक, मणियंगा य अणियणा, मण्यङ्गाश्च अनग्नाः,
७. कल्पवृक्ष। सत्तमगा कप्परक्खा य ॥ सप्तमक: कल्परक्षाश्च ।। ६६. सत्तविधा दंडनीति पण्णत्ता, तं
६६. दण्डनीति के सात प्रकार हैं
१. हाकार-हा ! तूने यह क्या किया ? हक्कारे, मक्कारे, धिक्कारे, सप्तविधा दण्डनीतिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा- २. माकार---आगे ऐसा मत करना। परिभासे, मंडलबंधे, चारए, हाकारः, माकारः, धिक्कारः, परिभाष:, ३. धिक्कार-धिक्कार है तुझे, तूने ऐसा छविच्छेदे। मण्डलबन्धः, चारकः, छविच्छेदः ।
किया? ४. परिभाष-थोड़े समय के लिए नजरबन्द करना, क्रोधपूर्ण शब्दों में 'यहीं बैठ जाओ' का आदेश देना। ५. मण्डलबंध----नियमित क्षेत्र से बाहर न जाने का आदेश देना। ६. चारक-कैद में डालना। ७. छविच्छेद हाथ-पैर आदि काटना।
चक्कवट्टिरयण-पदं चक्रवत्तिरत्न-पदम्
चक्रवत्ति रत्न-पद ६७. एगमेगस्स पं रणो चाउरंत- एकैकस्य राज्ञ: चातुरन्तचक्रवर्तिनः सप्त ६७. प्रत्येक चतुरंत चक्रवर्ती राजा के सात
चक्कवट्टिस्स सत्त एगिदियरतणा एकेन्द्रियरत्नानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-- एकेन्द्रिय रत्न होते हैं.५... पण्णता, तं जहा.
१. चक्ररत्न, २. छत्ररत्न, ३. चर्मरत्न, चक्करयणे, छत्त रयणे, चम्मरयणे, चक्ररत्नं, छत्ररत्न, चर्मरत्नं, दण्डरत्नं, ४. दण्डरत्न, ५. असिरत्न, ६. मणिरत्न, दंडरयणे, असिरयण, मणिरयणे, असिरत्नं, मणिरत्नं, काकिनीरत्नम।। ७. काकणीरत्न।
काकणिरयणे। ६८. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंत- एकैकस्य राज्ञः चातुरन्तचक्रवर्तिनः ६८. चतुरन्त चक्रवर्ती राजा के सात पञ्चेन्द्रिय
चक्कवट्टिस्स सत्त पंचिदियरतणा सप्त पञ्चेन्द्रिय रत्नानि प्रज्ञप्तानि, रत्न होते हैं - पण्णत्ता, तं जहातद्यथा
१. सेनापतिरत्न, २. गृहपतिरत्न, सेणावतिरयणे, गाहावतिरयणे, सेनापतिरत्नं, गृहपतिरत्नं, वर्धकिरत्नं, ३. वर्द्धकीरत्न, ४. पुरोहितरत्न, वड्डइरयणे, पुरोहितरयणे, पुरोहितरत्नं, स्त्रीरत्नं, अश्वरत्नं, ५. स्त्रीरत्न, ६. अश्वरत्न, ७. हस्तिरत्न। इत्थिरयणे, आस रयणे, हत्थिरयणे। हस्ति रत्नम् ।
दुस्समा-लक्खण-पदं दुःषमा-लक्षण-पदम्
दुःषमा-लक्षण-पद ६६. सहि ठाणेहि ओगाढं दुस्समं सप्तभिः स्थान: अवगाढां दुष्षमा ६६. सात स्थानों से दुष्षमाकाल की अवस्थिति जाणेज्जा, तं जहाजानीयात्, तद्यथा
जानी जाती है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org