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________________ ठाणं (स्थान) ७२७ स्थान ७: सूत्र ४६-४८ ४६. मज्झिमगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ मध्यमग्रामस्य सप्त मूर्च्छनाः प्रज्ञप्ताः, ४६. मध्यमग्राम की मूर्च्छनाएं" सात हैंपण्णत्ताओ, तं जहातद्यथा १. उत्तरमन्द्रा, २. रजनी, ३. उत्तरा, १. उत्तरमंदा रयणी, १. उत्तरमन्द्रा रजनी, ४. उत्तरायता, ५. अश्वक्रान्ता, उत्तरा उत्तरायता। उत्तरा उत्तरायता। ६. सौवीरा, ७. अभिरुद्गता। अस्सोकंता य सोवीरा, अश्वक्रान्ता च सौवीरा, अभिरू हवति सत्तमा॥ अभिरु (द्गता) भवति सप्तमी ।। ४७. गंधारगामस्स णं सत्त मुच्छणाओ गान्धारग्रामस्य सप्त मूर्च्छनाः ४७. गांधारग्राम की मूछनाएं" सात हैंपण्णत्ताओ, तं जहा.- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. नंदी, २. क्षुद्रिका, ३. पूरका, १. णंदी य खुदिमा पूरिमा, १. नंदी च क्षुद्रिका पूरिका, ४. शुद्धगांधारा, ५. उत्तरगांधारा, य चउत्थी य सुद्धगंधारा। च चतुर्थी च शुद्धगांधरा। ६. सुष्ठुतर आयामा, ७. उत्तरायता उत्तरगंधारावि य, उत्तरगांधारापि च, कोटिमा। पंचमिया हवती मुच्छा उ॥ पंचमिका भवती मूर्छा तु ॥ २. सुठुत्तरमायामा, २. सुष्ठूत्तरायामा, सा छट्ठी णियमसो उ णायव्वा। सा षष्ठी नियमतस्तु ज्ञातव्या। अह उत्तरायता, अथ उत्तरायता, कोडिमा य सा सत्तमी मुच्छा॥ कोटिमा च सा सप्तमी मूर्छा ॥ ४८. १. सत्त सरा कतो संभवंति ? १. सप्त स्वराः कतः संभवन्ति ? गीतस्य ४८. सात स्वर किनसे उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि-जाति क्या है? उसका गीतस्स का भवति जोणी? का भवति योनिः ? उच्छवास-काल परिमाण-काल] कितना कतिसमया उस्साया ? कतिसमयाः उच्छ्वासा: ? होता है? और उसके आकर कितने होते हैं? सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं। रुदन कति वा गीतस्स आगारा? कति वा गीतस्याकारा:? गेय की योनि हैं। जितने समय में किसी २. सत्त सरा णाभीतो, २. सप्त स्वराः नाभितो, छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना भवंति गोतं च रुण्णजोणीयं । भवन्ति गीतं च रुदितयोनिकम् । उसका उच्छ्वास-काल होता है और उसके आकार तीन होते हैं-आदि में मद, मध्य पदसमया ऊसासा, पदसमयाः उच्छ्वासाः, में तीव्र और अन्त में मंद। तिणि य गीयस्स आगारा॥ जयश्च गीतस्याकाराः ॥ गीत के छह दोष, आठ गुण, तीन वृत्त और दो भणितियां होती हैं। जो ३. आइमिउ आरभंता, ३. आदिमृदु आरभमाणाः, इन्हें जानता है, वह सुशिक्षित व्यक्ति ही समुव्बहता य मझगारंमि । समुद्वहन्तश्च मध्यकारे। इन्हें रंगमञ्च पर गाता है। गीत के छह दोषअवसाणे य झवता, अवसाने च क्षपयन्त:, १. भीत-भयभीत होते हुए गाना। तिणि य गेयस्स आगारा॥ त्रयश्च गेयस्याकाराः॥ २.द्रत--शीघ्रता से गाना ४. छद्दोसे अद्वगुणे, ४. षड्दोषाः अष्टगुणाः, ३. हस्व-शब्दों को लघु बनाकर गाना। ४. उत्ताल--ताल से आगे बढ़कर या तिणि यवित्ताई दो य भणितीओ। त्रीणि च वृत्तानि द्वे च भणिती। ताल के अनुसार न गाना। जो णाहिति सो गाहिइ, यः ज्ञास्यति स गास्यति, ५. काक स्वर-कौए की भांति कर्णकटु स्वर से गाना। सुसिक्खिओ रंगमज्झम्मि ॥ सुशिक्षितः रंगमध्ये ।। ६. अनुनास-नाक से गाना। ५. भीतं दुतं रहस्सं, ५. भीतं द्रुतं ह्रस्वं, गीत के आठ गुण १. पूर्ण-स्वर के आरोह-अवरोह आदि गायंतो मा य गाहि उत्तालं। गायन् मा च गासी: उत्तालम् । परिपूर्ण होना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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