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ठाणं (स्थान)
स्थान ७ : सूत्र ४१-४३ १. सज्जं तु अग्गजिन्भाए, १. षड्जं त्वग्रजिह्वया,
१. षड्ज का स्थान जिह्वा का अग्र भाग। उरेण रिसभं सरं। उरसा ऋषभं स्वरम् ।
२. ऋषभ का वक्ष। कंठुग्गतेणं गंधार, कण्ठोद्गतेन गान्धारं,
३. गांधार कण्ठ । मज्झजिब्भाए मज्झिमं॥ मध्यजिह्वया मध्यमम् ॥
४. मध्यम का जिह्वा का मध्य भाग। २. णासाए पंचमं बूया. २. नासया पञ्चमं ब्र यात्,
५. पंचम का नासा। दंतोट्टण य धेवतं। दन्तौष्ठेन च धैवतम्।
६. धैवत का दांत और होठ का संयोग । मुद्धाणेण य सादं, मूर्ना च निषाद,
७. निषाद का मूर्धा (सिर)। सरढाणा वियाहिता ॥ स्वरस्थानानि व्याहृतानि ।। ४१. सत्त सरा जीवणिस्सिता पण्णत्ता, सप्त स्वरा: जीवनिःश्रिताः ४१. जीवनिःश्रित स्वर सात हैं१२... तं जहाप्रज्ञप्ता:, तद्यथा
१. मयूर षड्ज स्वर में बोलता है। १. सज्ज रवति मयूरो, १. षड्ज रौति मयूरः,
२. कुक्कुट ऋषभ स्वर में बोलता है। कुक्कुडो रिसभं सरं। कुक्कुट: ऋषभं स्वरम् ।
३. हंस गांधार स्वर में बोलता है। हंसो णदति गंधारं, हंसो नदति गान्धारं,
४. गवेलक मध्यम स्वर में बोलता है। मझिमं तु गवेलगा॥ मध्यमं तु गवेलकाः ।।
५. वसन्त में कोयल पंचम स्वर" में २. अह कुसुमसंभवे काले, २. अथ कुसुमसंभवे काले,
बोलता है। कोइला पंचमं सरं। कोकिलाः पञ्चमं स्वरम् ।
६. क्रौंच और सारस धैवत स्वर में छट्टच सारसा कोंचा, षष्ठं च सारसाः क्रौञ्चाः,
बोलते हैं। णेसायं सत्तमं गजो॥ निषादं सप्तमं गजः ॥
७. हाथी निषाद स्वर में बोलता है। ४२. सत्तसरा अजीवणिस्सिता पण्णत्ता, सप्त स्वराः अजीवनि:श्रिताः प्रज्ञप्ताः, ४२. अजीवनि:श्रित स्वर सात हैंतं जहातद्यथा
१. मृदङ्ग से षड्ज स्वर निकलता है। १. सज्ज रवति मुइंगो, १. षड्जं रौति मृदङ्गः,
२. गोमुखी-नरसिंघा नामक बाजे से गोमुही रिसभं सरं। गोमुखी ऋषभं स्वरम् ।
ऋषभ स्वर निकलता है। संखो णदति गंधारं, शङ्खो नदति गान्धारं,
३. शंख से गांधार स्वर निकलता है। मज्झिमं पुण झल्लरी॥ मध्यमं पुनः झल्लरी॥
४. झल्लरी-झांझ से मध्यम स्वर निक२. चउचलणपतिट्ठाणा, २. चतुश्चरणप्रतिष्ठाना,
लता है। गोहिया पंचमं सरं। गोधिका पञ्चमं स्वरम् ।
५. चार चरणों पर प्रतिष्ठित गोधिका से आडंबरो धेवतियं, आडम्बरो धैवतिक,
पंचम स्वर निकलता है। महाभेरी य सत्तम। महाभेरी च सप्तमम् ॥
६. ढोल से धैवत स्वर निकलता है।
७. महाभेरी से निपाद स्वर निकलता है। ४३. एतेसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त एतेषां सप्तानां स्वराणां सप्त स्वर- ४३. इन सातों स्वरों के स्वर-लक्षण सात हैंसरलक्खणा पण्णत्ता, तं नहा- लक्षणानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
१. षड्ज स्वर वाले व्यक्ति आजीविका १. सज्जेण लभति वित्ति, १. षड्जेन लभते वृत्ति,
पाते हैं। उनका प्रयत्न निष्फल नहीं कतं च ण विणस्सति । कृतं च न विनश्यति।
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