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ठाणं (स्थान)
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स्थान ६ : टि० ३०-३१
सीमन्तकप्रभ से बीसवें और इक्कीसवें नरक हैं; जरक और प्रजरक-ये दोनों सीमन्तकप्रभ से पैतीसवें और छत्तीसवें नरक हैं। ये सारे नरक पूर्व दिशा की आवलिका में ही हैं।
उत्तरदिशा की आवलिका में-लोलमध्य और लोलुपमध्य । पश्चिमदिशा की आवलिका में-लोलावत और लोलुपावर्त । दक्षिणदिशा की आवलिका में--लोलावशिष्ट और लोलुपावशिष्ट ।
चौथी नरकपृथ्वी में सात प्रस्तट और सात नरकेन्द्रक हैं। वृत्तिकार ने संग्रहगाथा का उल्लेख कर उनके नाम इस प्रकार दिए हैं-आर, मार, नार, ताम्र, तमस्क, खाडखड और खण्डखड ।
प्रस्तुत सूत्र में छह नाम उल्लिखित हैं-आर, वार, मार, रौर, रौरुक और खाडखड। ये नाम संग्रहगाथागत नामों से भिन्न-भिन्न हैं । छह नाम देने का कारण सम्भवत यह है कि ये छह अत्यन्त निकृष्ट हैं।
वृत्तिकार के अनुसार आर, मार और खांडखड-ये तीन नरकेन्द्रक हैं। कई बार, रौर और रोरुक को प्रकीर्णक मानते हैं अथवा यह भी सम्भव है कि ये तीन भी नरकेन्द्रक हों, जो नामान्तर से उल्लिखित हुए हैं।'
३० (सू० ७२)
वैमानिक देवों के तीन भेद हैंकल्प देवलोक [१२ देवलोक] प्रैवेयक [ ६ देवलोक] अनुत्तर [५ देवलोक] इन सब में कुल ६२ विमान प्रस्तट हैं
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११-१२ ग्रेवेयक अनुत्तर
कुल
प्रस्तुतसूत्र में पांचवें देवलोक के छह विमान-प्रस्तटों का उल्लेख है।
३१-३३. (सू०७३-७५)
नक्षत्र-क्षेत्र के तीन भेद हैं१. समक्षेत्र---चन्द्रमा द्वारा तीस मुहर्त में भोगा जाने वाला नक्षत्र-क्षेत्र [आकाश-भाग] । २. अर्द्धसमक्षेत्र–चन्द्रमा द्वारा १५ मुहूर्त में भोगा जाने वाला नक्षत्र-क्षेत्र।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३४८ । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३४६ ।
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