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ari (स्थान)
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स्थान ६ : टि०४-८
केवली प्रत्यक्षज्ञान से जानता है और श्रुतज्ञानी परोक्ष ज्ञान से। केवली द्रव्य को सब पर्यायों से जानता है और श्रुतकेवली कुछेक पर्यायों से जानता है। जो 'सर्वभावेन' किसी एक वस्तु को जानता है, वह सब कुछ जान लेता है । आचारांग में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन इस प्रकार हुआ है—
जे एगं जाणइ, से सव्वं जाणइ । जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ।। '
इसी आशय का एक श्लोक न्यायशास्त्र में उपलब्ध होता है
४. तारों के आकारवाले ग्रह ( सू०७ )
जो तारों के आकार वाले ग्रह हैं, उन्हें ताराग्रह कहा जाता है। ग्रह नौ हैं—सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुद्ध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतू । इनमें सूर्य, चन्द्र और राहु ये तीन ग्रह तारा के आकार वाले नहीं हैं। शेष छह ग्रह तारा के आकार वाले हैं। इसलिए उन्हें ताराग्रह' कहा गया है ।"
५. ( सू० १२)
'एको भावः सर्वथा येन दृष्टः, सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वे भावा: सर्वथा येन दृष्टाः, एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः ।।
६. ( सू० १३ )
देखें – दसवेआलिय ४ । सूत्र ८ का टिप्पण ।
मिलाइए - उत्तरज्झयणाणि ३।७-११ ।
७. ( सू० १४ )
इन्द्रियां पांच हैं। उनके विषय नियत हैं, जैसे—श्रोत्रेन्द्रिय का शब्द, चक्षु इन्द्रिय का रूप घ्राण इन्द्रिय का गन्ध, जिह्वन्द्रिय का रस और स्पर्शनेन्द्रिय का स्पर्श । नोइन्द्रिय- मन का विषय नियत नहीं होता। वह 'सर्वार्थग्राही' होता है। तत्त्वार्थ में उसका विषय 'श्रुत' बतलाया है' । श्रुत का अर्थ है शब्दात्मक ज्ञान । इसका तात्पर्य है कि मन सभी इन्द्रियों द्वारा गृहीत पदार्थों का ज्ञान करता है तथा शब्दानुसारी ज्ञान भी कर सकता है ।
प्रस्तुत सूत्र में इन्द्रियों के विषय निर्दिष्ट नहीं हैं।
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८. चारण (सू० २१)
चारण का अर्थ है -गमन और आगमन की विशेष लब्धि से सम्पन्न मुनि । वे मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं१. जंघाचारण- जिन्हें चारित्र और तप की विशेष आराधना के कारण गमनागमन को लब्धि प्राप्त होती है, वे जंघाचारण कहलाते हैं ।
२. विद्याचारण- जिन्हें विद्या की आराधना के कारण गमनागमन की लब्धि प्राप्त होती है वे विद्याचारण कहलाते हैं ।
चारणों के कुछ अन्य प्रकारों का उल्लेख भी मिलता है। जैसे
१. आयारो ३।७४ ।
२. स्थानांगवृत्ति पत्र ३३७ तारकाकारा ग्रहास्तारकग्रहाः, लोके
हि नव ग्रहाः प्रसिद्धाः तत्र च चन्द्रादित्यराहूणामतारकारत्वादन्ये पट् तथोक्ता इति ।
३. तत्त्वार्थ सूत्र २।२१ : श्रुतमनिन्द्रियस्य ।
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