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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ६ : सूत्र ११६-१२५ परभवियाउय-पदं परभविकायुः-पदम् परभविकायुः-पद ११६. णेरइया णियमा छम्मासाव- नैरयिका नियम षण्मासावशेषायुषः ११६. नरयिक वर्तमान आयुष्य के छह मास शेष सेसाउया परभवियाउयं पगरेति। परभविकायुः प्रकुर्वन्ति । रह जाने पर निश्चय ही परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। १२०. एवं_असुरकुमारावि जाव एवम्—असुरकुमाराअपि यावत् १२०. इसी प्रकार असुरकुमार से स्तनितकुमार थणियकुमारा। स्तनित कुमाराः। तक के सभी भवनपति देव वर्तमान आयुष्य के छह मास शेष रहने पर निश्चय ही परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। १२१. असंखेज्जवासाउयासण्णिपंचिदिय- असंख्येयवर्षायुषः संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग- १२१. असंख्य वर्ष की आयु वाले समनस्क तिरिक्खजोणिया णियमं छम्मा- योनिकाः नियमं पण्मासावशेषायुषः तिर्यक्योनिक-पञ्चेन्द्रिय वर्तमान आयुष्य सावसेसाउया परभवियाउयं परभविका के छह मास शेष रहने पर निश्चय ही पगरति। परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। १२२. असंखेज्जवासाउया सणिमणुस्सा असंख्येयवर्षायुषः संज्ञिमनुष्याः नियम १२२. असंख्य वर्ष की आर वाले समनस्क मनुष्य णियमं छम्मासावसेसाउया षण्मासावशेषायुषः परभविकायुः दर्तमान आयुष्य के छह मास शेष रहने परभवियाउयं पगरेंति। प्रकुर्वन्ति। पर निश्चय ही परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। १२३. वाणमंतरा जोतिसवासिया वानमन्तरा: ज्यौतिषवासिकाः १२३. वानमंतर, ज्योतिषक और वैमानिक देव वेमाणिया जहा रइया। वैमानिकाः यथा नै रयिकाः । वर्तमान आयुष्य के छह मास शेष रहने पर निश्चय ही परभव के आयुष्य का बंध करते हैं। भाव-पद भाव-पदं १२४. छविधे भावे पण्णत्ते, तं जहा ओदइए, उवसमिए, खइए, खओवस मिए, पारिणामिए, सण्णिवातिए। भाव-पदम् षड्विधः भाव: प्रज्ञप्तः, तद्यथाऔदयिकः, औपशमिकः, क्षायिकः, क्षायोपशमिकः, पारिणामिकः, सान्निपातिकः। १२४. भाव के छह प्रकार हैं १. औदयिक, २. औपशमिक, ३. क्षायिक, ४.क्षायोपशमिक, ५. पारिणामिक, ६. सान्निपातिक। पडिक्कमण-पदं प्रतिक्रमण-पदम् प्रतिक्रमण-पद १२५. छविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तं षड्विधं प्रतिक्रमणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- १२५. प्रतिक्रमण छह प्रकार का होता हैजहाउच्चारप्रतिक्रमणं, १. उच्चार प्रतिक्रमण-मल-त्याग करने उच्चारपडिक्कमणे, के बाद वापस आकर ईपिथिकी सूत्र के द्वारा प्रतिक्रमण करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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