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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ६ : सूत्र ६९-१०१ सोइंदियत्थोग्गहे, श्रोत्रेन्द्रियार्थावग्रहः, १. थोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह, 'चविखदियत्थोग्गहे, चक्षुरिन्द्रियार्थावग्रहः, २. चक्षुरिन्द्रिय अर्थावग्रह, घाणिदियत्थोग्गहे, घ्राणेन्द्रियार्थावग्रहः, ३. घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह, जिभिदियत्थोग्गहे, जिह्वन्द्रियार्थावग्रहः, ४. जिह्वन्द्रिय अर्थावग्रह, फासिदियत्थोग्गहे, स्पर्शेन्द्रियार्थावग्रहः, ५. स्पर्शनेन्द्रिय अर्थावग्रह, णोइंदियत्थोग्गहे। नो इन्द्रियार्थावग्रहः । ६. नोइन्द्रिय अर्थावग्रह। ओहिणाण-पदं अवधिज्ञान-पदम् अवधिज्ञान-पद ६६. छविहे ओहिणाणे पण्णत्ते, तं षड्विधं अवधिज्ञानं प्रज्ञप्तम्, ६६. अवधिज्ञान के छह प्रकार हैंजहातद्यथा १. आनुगामिक, २. अनानुगामिक, आणुगामिए, अणाणुगामिए, आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्धमानकं, ३. वर्धमान, ४. हीयमान, ५. प्रतिपाति, वड्डमाणए, हायमाणए, पडिवाती, हीयमानकं, प्रतिपाति, अप्रतिपाति। ६. अप्रतिपाति । अपडिवाती। अवयण-पदं अवचन-पदम् अवचन-पद . १००. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को छह अवचन १००. णो कप्पई णिग्गंथाण वा नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां " [गहित वचन नहीं बोलने चाहिए.--- णिग्गंथीण वा इमाइं छ अवयणाई वा इमानि षड़ अवचनानि वदितुम. १. अलीकवचन---असत्यवचन, वदित्तए, तं जहा तद्यथा २. हीलितवचन-- अवहेलनायुक्तवचन, अलियवयणे, होलियवयणे, अलीकवचनं, हीलितवचनं, ३. खिसितवचन-मर्मवेधीवचन, खिसितवयणे, फरुसवयणे, खिसितवचनं, परुषवचनं, ४. परुषवचन-कटुकवचन, गारत्थियवयणे, अगारस्थितवचनं, ५. अगारस्थितवचन-मेरा पुत्र, मेरी विउसवितं वा पुणो उदीरित्तए। व्यवशमितं वा पुनः उदीरयितुम् । माता—ऐसा सम्बन्ध सूचक वचन । ६. उपशांत कलह को उभाड़ने वाला वचन । कप्पस्स पत्थार-पदं कल्पस्यप्रस्तार-पदम् कल्प-प्रस्तार-पद १०१. छ कप्पस पत्थारा पण्णत्ता, तं षड् कल्पस्य प्रस्ताराः प्रज्ञप्ताः, १०१. कल्प [साध्वाचार] के छह प्रस्तार [प्रायश्चित्त-रचना के विकल्प हैंजहातद्यथा १. प्राणातिपातसम्बन्धी आरोपात्मक पाणातिवायस्स वायं वयमाणे। प्राणातिपातस्य वादं वदन्, वचन बोलने वाला। मुसावायरस वायं बयाणे, मृषावादस्य वादं वदन्, २.नषावादसम्बन्धी आरोपात्मक वचन अदिष्णादाणस्स वायं वयमाणे, अदत्तादानस्य वादं वदन, बोलने वाला। ३. अदत्तादानसम्बन्धी आरोपात्मक वचन अविरतिवायं वयमाणे, अविरतिवादं वदन, बोलने वाला। अपुरिसवायं वयमाणे, अपुरुषवादं वदन्, ४. अब्रह्मचर्यसम्बन्धी आरोपात्मक वचन दासवायं वयमाणेदासवादं वदन् बोलने वाला। ५. नपुंसक होने का आरोप लगाने वाला। ६. दास होने का आरोप लगाने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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