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________________ स्थान ४ : सूत्र १०२-१०३ ठाणं (स्थान) ६७७ इच्चेते छ कप्पस्स पत्थारे पत्थरेत्ता इत्येतान् षट् कल्पस्य प्रस्तारान् प्रस्तार्य । सम्ममपडिपूरेमाणे तट्टाणपत्ते। सम्यक् अप्रतिपूरयन् तत्स्थानप्राप्तः। इस प्रकार कल्प के प्रस्तारों को स्थापित कर यदि कोई साधु उन्हें प्रमाणित न कर सके तो वह तत्स्थान प्राप्त होता हैआरोपित दोष के प्रायश्चित्त का भागी होता है। पलिमंथु-पदं पलिमन्थ-पदम् पलिमन्थु-पद १०२. छ कप्पस्स पलिमंथु पण्णत्ता, तं षड् कल्पस्य परिमन्थवः प्रज्ञप्ताः, १०२. कल्प [साध्वाचार] के छह परिमंथु जहातद्यथा [प्रतिपक्षी] हैं"कोकुइते संजमस्स पलिमंथू, कौकुचितः संयमस्य परिमन्थुः, १. कौकुचित-चपलता करने वाला संयम मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथ, मौखरिकः सत्यवचनस्य परिमन्थः, का परिमंथु है। चक्खुलोलुए ईरियावहियाए चक्षुर्लोलुपः ऐपिथिक्याः परिमन्युः, २. मौखरिक-वाचाल सत्यवचन का पलिमंथ, तितिणिए एसणागोयरस्स तितिणिकः' एषणागोचरस्य परिमन्युः, परिमंथ है। पलिमंथू, इच्छालोभिते मोत्ति- इच्छालोभिकः मुक्तिमार्गस्य परिमन्थुः, ३. चक्षुलोलुप ---दृष्टि-आसक्त ईपिथिक मग्गस्स पलिमंथू, भिज्जाणिदाण- भिध्यानिदानकरणं मोक्षमार्गस्य का परिमंथु है। करणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, परिमन्थः, ४. तितिणक --चिड़चिड़े स्वभाव वाला सव्वत्थ भगवता अणिदाणता सर्वत्र भगवता अनिदानता प्रशस्ता। भिक्षा की एषणा का परिमंथु है। पसत्था। ५. इच्छालोभिक—अतिलोभी मुक्तिमार्ग का परिमंथु है। ६. भिध्यानिदानकरण-आसक्तभाव से किया जाने वाला पौद्गलिक सुखों का संकल्प मोक्षमार्ग का परिमंथ है। भगवान् ने अनिदानता को सर्वत्र प्रशस्त कहा है। कप्पठिति-पदं कल्पस्थिति-पदम् कल्पस्थिति-पद १०३. छन्विहा कप्पद्विती पण्णत्ता, तं षड्विधा कल्पस्थितिः प्रज्ञप्ताः, १०३. कल्पस्थिति छह प्रकार की है." जहातद्यथा-- १. सामायिककल्पस्थिति, सामाइयकप्पद्विती, सामायिककल्पस्थिति:, २. छेदोपस्थापनीयकल्पस्थिति, छेओवट्ठावणियकप्पद्विती, छेदोपस्थापनीयकल्पस्थिति:, ३. निर्विशमानकल्पस्थिति, णिव्विसमाणकप्पद्विती, निर्विशमानकल्पस्थितिः, ४. निविष्टकल्पस्थिति, णिन्वटुकप्पद्विती, निविष्टकल्पस्थितिः, ५. जिनकल्पस्थिति, जिणकप्पद्विती, जिनकल्पस्थितिः, ६. स्थविरकल्पस्थिति। थेरकप्पद्विती। स्थविरकल्पस्थितिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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