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________________ ठाणं (स्थान) ६६७ स्थान ६ : सून ५५-६१ ____ अग्गमहिसी-पदं अग्रमहिषी-पदम् अग्रमहिषी-पद ५५. धरणस्स णंणागकुमारिदस्स णाग- धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमार- ५५. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के कुमाररण्णो छ अग्गमहिसीओ राजस्य षड् अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, छह अग्रमहिषियां हैं--- पण्णत्ताओ, तं जहा तद्यथाअला, सक्का सतेरा, अला, शक्रा, शतेरा, सौदामिनी, १. अला, २. शक्रा, ३. शतेरा, सोतामणी, इंदा, घणविज्जुया। इन्द्रा, घनविद्युत् । ४. सौदामिनी, ५. इन्द्रा, ६. घनविद्युत् । ५६. भूताणंदस्स णं णागकुमारिदस्स भूतानन्दस्य नागकुमारेन्द्रस्य नाग- ५६. नागाकुमारेन्द्र नागकुमारराज भुतानन्द णागकुमाररण्णो छ अग्गमहिसीओ कुमारराजस्य षड् अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, के छह अग्रमहिषियां हैंपण्णत्ताओ, तं जहा तद्यथारूवा, रूवंसा, सुरुवा, रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, १. रूपा, २. रूपांशा, ३. सुरूपा, रूववंतो, रूवकता, रूवप्पभा। रूपकांता, रूपप्रभा। ४. रूपवती, ५. रूपकांता, ६.रूपप्रभा। ५७. जहा धरणस्स तहा सव्वेसि दाहि- यथा धरणस्य तथा सर्वेषां दाक्षिणात्यानां ५७. दक्षिण दिशा के भवनपति इन्द्र वेणदेव, णिल्लाणं जाव घोसस्स। यावत् घोषस्य। हरिकांत, अग्निशिख, पूर्ण, जलकांत, अमितगति, वेलम्ब तथा घोष के भी [धरण की भांति छह-छह अग्रमहिषियां ५८. जहा भूताणंदस्स तहा सव्वेसि यथा भूतानन्दस्य तथा सर्वेषां ५८. उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्र वेणुदालि, उत्तरिल्लाणं जाव महाघोसस्स। औदीच्यानां यावत् महाघोषस्य । हरिस्सह, अग्निमानव, दिशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभजन और महाघोष के भी [भूतानन्द की भांति ] छह-छह अग्रमहिषियां हैं। सामाणिय-पदं सामानिक-पदम् सामानिक-पद ५६. धरणस्सणं णागकुमारिदस्स णाग- धरणस्य नागकुमारेन्द्रस्य नागकुमार- ५६. नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरण के कुमाररण्णो छस्सामाणिय- राजस्य षट् सामानिकसाहस्त्र्य: छह हजार सामानिक हैं। साहस्सीओ पण्णत्ताओ। प्रज्ञप्ताः । ६०. एवं भूताणंदस्सवि जाव महा- एवं भूतानन्दस्यापि यावत् महाघोषस्य। ६०. इसी प्रकार नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज घोसस्स। भूतानन्द, वेणुदालि, हरिस्सह, अग्निमानव, विशिष्ट, जलपुत्र, अमितावहन, प्रभजन और महाघोष के छह-छह हजार सामा निक हैं। मइ-पदं मति-पदम् मति-पद ६१. छव्विहा ओगहमती पण्णत्ता, तं षड्विधा अवग्रहमतिः प्रज्ञप्ता, ६१. अवग्रहमति [सामान्य अर्थ के ग्रहण] के जहातद्यथा छह प्रकार हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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