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________________ ठाणं (स्थान) ६५७ स्थान ६ : सूत्र ७-११ ७. छ तारग्गहा पण्णत्ता, तं जहा- षट् ताराग्रहाः प्रज्ञप्ताः , तद्यथा.. ७. छह ग्रह तारों के आकार वाले हैंसुक्के, बुहे, बहस्सती, अंगारए, शुक्रः, बुधः, बृहस्पतिः, अङ्गारकः, १. शुक्र, २. बुध, ३. वृहस्पति, सणिच्छरे, केतू। शनैश्चरः, केतुः। ४. अंगारक, ५. शनिश्चर. ६. केतु। ८. छव्विहा संसारसमावण्णगा जीवा षड्विधाः संसारसमापन्नका: जीदाः ८. संसारसमापन्नक जीव छह प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा प्रज्ञप्ताः, तद्यथापुढविकाइया, आउकाइया, पृथिवीकायिकाः, अप्कायिकाः, १. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, तेउकाइया, बाउकाइया, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, ३. तेजस्कायिक, ४. वाशुकायिक, वणस्सइकाइया, तसकाइया। वनस्पतिकायिकाः, त्रसकायिकाः । ५. वनस्पतिकायिक, ६. वसकायिक । गति-आगति-पदं गति-आगति-पदम् गति-आगति-पद ६. पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पथिवीकायिकाः षड्गतिकाः षडा- ६. पृथ्वीकायिक जीव छह स्थानों में गति पण्णत्ता, तं जहा- गतिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा तथा छह स्थानों से आगति करते हैं--- पुढविकाइए पुढविकाइएसु पृथिवीकायिकाः पृथिविकायिकेषु पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय में उत्पन्न उववज्जमाणे पुढविकाइएहितोवा, उपपद्यमानः पृथिवीकायिकेभ्यो वा, होता हुआ पृथ्वीकायिकों से, अप्काथिकों 'आउकाइएहितो वा, तेउकाइए- अप्कायिकेभ्यो वा, तेजस्कायिकेभ्यो वा, से, तेजस्कायिकों से, वायुकायिकों से, हितो वा, वाउकाइएहितो वा, वायुकायिकेभ्यो वा, वनस्पतिकायिकेभ्यो वनस्पतिकायिकों से तथा त्रसकायिकों से वणस्सइकाइएहितोवा, तसकाइए- वा, त्रसकायिकेभ्यो वा उपपद्यत । उत्पन्न होता है। हितो वा उबवज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढवि- स चैव असो पृथिवीकायिकः पृथिवी- पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय को छोड़ता काइयत्तं विप्पजहमाणे पुढविका- कायिकत्वं विप्रजहत् पृथिवीकायिकतया । हुआ पृथ्वीकायिकों में, अप्कायिकों में, इयत्ताए वा, 'आउकाइयत्ताए वा, वा, अप्कायिकतया वा, तेजस्कायिक- तेजस्कायिकों में, वायुकायिकों में, वनतेउकाइयत्ताए या, वाउकाइयत्ताए तया वा, वायुकायिकतया वा, वनस्पति- स्पतिकायिकों में तथा वसकायिकों में वा, वणस्सइकाइयत्ताए वा, कायिकतया वा, त्रसकायिकतया वा उत्पन्न होता है। तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा। गच्छेत् ।। १०. आउकाइया छगतिया छआगतिया अप्कायिकाः षड्गतिकाः षडागतिकाः १०. इसी प्रकार अप्कायिक, तेजस्कायिक, एवं चेव जाव तसकाइया। एवं चैव यावत् त्रसकायिकाः । वायुकायिक, वनस्पतिकायिक तथा वसकायिक जीव छह स्थानों में गति तथा छह स्थानों से आगति करते हैं। जीव-पदं जीव-पदम् जीव-पद ११. छव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता तं जहा- षड्विधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ११. सब जीव छह प्रकार के हैं आभिणिबोहियणाणी, 'सुयणाणी, आभिनिबोधिकज्ञानिनः, श्रुतज्ञानिनः, १. आभिनिवोधिकज्ञानी, २. श्रुतज्ञानी, ओहिणाणी, मणपज्जवणाणी,° अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनः, ३. अवधिज्ञानी, ४. मनःपर्यवज्ञानी, केवलणाणी, अण्णाणी। केवलज्ञानिनः, अज्ञानिनः। ५. केवलज्ञानी, ६. अज्ञानी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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