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ठाणं (स्थान)
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स्थान ५:टि० १२६-१२७
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वृत्तिकार ने सभी संवत्सरों के स्वरूप तथा कालमान का निर्देश भी किया है। विवरण इस प्रकार है
१. नक्षत्रसंवत्सर---जितने काल में चन्द्रमा नक्षत्रमंडल का परिभोग करता है, उसे नक्षत्रमास कहते हैं। इसमें २७. दिन होते हैं । बारह मास का एक संवत्सर होता है। नक्षत्रसंवत्सर में [२७ १.४ १२] ३२७१ दिन होते हैं।'
२. युगसंवत्सर---पांच संवत्सरों का एक युगसंवत्सर होता है। इसमें तीन चन्द्रसंवत्सर और दो अभिवद्धितसंवत्सर होते हैं । चंद्रसंवत्सर में [२०३२४ १२] ३५४१२ दिन होते हैं और अभिवद्धित संवत्सर में [ ३११२१ x १२] ३८३४. दिन होते हैं।
अभिवद्धित संवत्सर में अधिकमास होता है।' ३. प्रमाणसंवत्सर-दिवस आदि के परिमाण से उपलक्षित संवत्सर । यह भी पाँच संवत्सरों का एक समवाय होता है... (१) नक्षत्रसंवत्सर। (२) चन्द्रसंवत्सर । (३) ऋतुसंवत्सर- इसमें प्रत्येक मास तीस अहोरात्र का होता है। संवत्सर में ३६० दिन-रात होते हैं। (४) आदित्यसंवत्सर- इसमें प्रत्येक मास साढे तीस अहोरात्र का होता है। संवत्सर में ३६६ दिन-रात होते हैं । (५) अभिवधित संवत्सर। ४. लक्षणसंवत्सर-लक्षणों से जाना जानेवाला संवत्सर। यह भी पांच प्रकार का है।' (देखें-सूत्र २१३ का अनुवाद)।
५. शनिश्चरसंवत्सर--जितने समय में शनिश्चर एक नक्षत्र अथवा बारह राशियों का भोग करता है उतने कालपरिमाण को शनिश्चरसंवत्सर कहा जाता है। नक्षत्रों के आधार पर शनिश्चरसंवत्सर अठाईस प्रकार का होता है। यह भी माना जाता है कि महाग्रह शनिश्चर तीस वर्षों में सम्पूर्ण नक्षत्न-मंडल का भोग कर लेता है।
६. कर्मसंवत्सर-इसके दो पर्यायवाची नाम हैंऋतुसंवत्सर, सावनसंवत्सर।"
१२६. निर्याणमार्ग (सू० २१४)
मृत्यु के समय जीव-प्रदेश शरीर के जिन मार्गों से निर्गमन करते हैं, उन्हें निर्याणमार्ग कहा जाता है। यहाँ उल्लिखित पांच निर्याणमार्गों तथा उनके फलों का निर्देश केवल व्यावहारिक प्रतीत होता है।
१२७. अनन्तक (सू० २१७)
देखें-१०६६ का टिप्पण।
१. स्थानांगवत्ति, पत्र ३२७ । २. वही, पत्र ३२७ । ३. वही, पन ३२७ ।
अभिवधितारव्ये संवत्सरे अधिकमासः पततीति । ४. बही, पत्र ३२७ ॥ ५. वही, पत्र ३५७ । ६. वही, पन ३२७:
यावता कालेन शनैश्चरो नक्षत्रमेकमथवा द्वादशापि
राशीन् भुक्ते स शनैश्चरसंवत्सर इति, यतश्चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रम्-'सनिच्छरसंवच्छरे अट्ठावीसविहे पन्नत्ते-अभीई सवणे जाव उत्तरासाढा, जं वा संबच्छरे महागहे तीसाए
संवच्छ रेहि सव्वं नक्खत्तमंडलं समाणेइ' त्ति । ७. वही, पत्र ३२८ :
यस्य ऋतुसंवत्सर सावनसंवत्सरश्चेति पर्यायो। ८. वही, पत्र ३२८ : निर्याण-परणकाले शरीरिणः शरीरा
निर्गमस्तस्य मार्गों निर्याणमार्गः ।
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