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________________ ठाणं (स्थान) ६४४ बकरी के रोएँ से बना वस्त्र । भेड़ आदि के रोमों के मिश्रण से बना वस्त्र । अश्व आदि के लोम से निष्पन्न वस्त्र । प्राचीनकाल में भेड़ों, ऊँटों, मृगों तथा बकरों के रोएँ को ऊखल में कूटकर वस्त्र जमाए जाते थे । उनको नमदे कहा जाता था । कुट्ट शब्द इसी का द्योतक है । निशीथ भाष्यवृत्ति में दुगुल्ल और तिरीड वृक्ष की त्वचाओं को कूटकर नमदे बनाने का उल्लेख है । * ५. भांगिक इसके दो अर्थ हैं- (१) अतसी से निष्पन्न वस्त्र । " (२) वंशकरील के मध्य भाग को कूटकर बनाया जाने वाला वस्त्र । ६. तिरीटपट्ट - लोध की छाल से बना वस्त्र । तिरीड वृक्ष की छाल के तंतू सूत के तंतु के समान होते हैं। उनसे बने वस्त्र को तिरीपट्ट कहा जाता है।" आचारांग की वृत्ति में जांगिक का अर्थ ऊँट आदि की ऊन से निष्पन्न वस्त्र तथा भांगिक का अर्थ --- विकलेन्द्रिय जीवों की लाला से निष्पन्न सूत से बने वस्त्र किया है । " अनुयोगद्वार में पांच प्रकार के वस्त्र बतलाए हैं— अंडज, बोंडज, कीटज, बालज और बल्कज ।' प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित पाँच प्रकारों में इनका समावेश हो जाता है जांगमिक अंडज, कीटज और बालज । भांगिक सानिक तिरी पोतक बोंडज । वृत्तिकार अभयदेवसूरी ने एक परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा है कि यद्यपि मूल सूत्र में वस्त्रों के पाँच प्रकार बतलाए हैं, परन्तु सामान्य विधि में मुनि को ऊन तथा सूत के कपड़े ही लेने चाहिए। इनके अभाव में रेशमी या बल्व लिए जा सकते हैं। वे भी अल्प मूल्य वाले होने चाहिए। पाटलीपुत्र के सिक्के से जिसका मूल्य अठारह रुपयों से एक लाख रुपयों तक का हो वह महामूल्य वाला है।" -वल्कज । १११, ११२. पच्चापिच्चिय, मुंजा पिच्चिय ( सू० १९१ ) १. 'वच्च' का अर्थ है - एक प्रकार की मोटी घास, जो दर्भ के आकार की होती है।" इसे बल्बज [ वल्वज] कहते हैं। पिच्चिय' का अर्थ है कुट्टिक । ११ १. विशेषचूर्णि (बृहत्कल्पभाष्य भाग ४ पृष्ठ १०१८ में उद्धृत ) कट्टिम छगलियारोमं । २. विशेषावश्यकभाष्य, गाया, ८७८ वृत्ति। ३. विशेषावश्यकभाष्य गाथा ८७८, वृत्ति- अश्वादि जीवलोम निष्पन्नं किट्टिसम् । Jain Education International स्थान ५ : टि० १११-११२ ४. निशीथ ६।१०-१२ की चूणि । ५. बृहत् कल्पभाष्य, गाथा ३६६३ : अतसीवंशीमादी उ भंगिय ६. वही, गाथा ३६६३ वृत्ति वंशकरीलस्य मध्याद् यद् निष्पद्यते तद् वा । ७. निशीथ ६।१ -१२ की चूर्णि तिरीक्खस्स बागो तस्स तंतू पट्टसरसो, सो तिरीलो पट्ट तम्मि क्याणि तिडपट्टाणि । -- ८. आचारांगवृत्ति पत्र ३६१ : जंगियं ति जंगमोष्ट्राचूर्णानिष्पन्नं, तथा 'भंगियं' ति नानाभंगिक विकलेन्द्रियलाला निष्पन्नम् । 8. अनुयोगद्वार सूत्र ४० । १०. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३२२ : महामूल्यता च पाटलीपुत्रीय रूपकाष्टादशकादारभ्य रूप लक्षं यावदिति । ११. (क) बृहत्कल्पभाष्य गाथा ३६७५ वृत्ति वच्चकं दर्भा - कारं तृणविशेषम् । (ख) निशीथ भाष्य गाथा ८२०, चूर्णि वच्चको - तणविसेसोदर्भाकृतिर्भवति । (ग) आप्टे डिक्शनेरी - बल्बज - A Kind of Coarse grass. १२. निशीय भाष्य गाथा ६२०, चूर्णि - पिच्चिउत्ति वा चिप्पि उत्तिवा, कुट्टितो त्ति वा एगट्ट । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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