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________________ ठाणं (स्थान) ( १ ) पट्टज - रेशमी वस्त्र । (२) सुवर्णज - कृमियों से निष्पन्न सूत्र, जो स्वर्ण के वर्ण का होता है। (३) मलयज - मलण देश के कीड़ों से निष्पन्न वस्त्र । (४) अंशुक - चिकने रेशम से बनाया गया वस्त्र । ' प्रारम्भ में यह वस्त्र सफेद होता था। बाद में रक्त, नील, श्याम आदि रंगों में रंगा जाता था। (५) चीनांशुक - कोशिकार नामक कीड़े के रेशम से बना वस्त्र अथवा चीन देश में उत्पन्न अत्यन्त मुलायम रेशम से बना वस्त्र । निशीथ की चूर्णि में सूक्ष्मतर अंशुक को चीनांशुक अथवा चीन देश में उत्पन्न वस्त्र को चीनांशुक माना है । " आचारांग के वृत्तिकार शीलांकसूरि ने अंशुक और चीनांशुक को नाना देशों में प्रसिद्ध मात्र माना है। " विशेषावश्यक भाष्य की वृत्ति में कीटज' के अन्तर्गत पाँच प्रकार के वस्त्र गिनाए गए हैं-पट्ट, मलय, अंशुक, चीनांशुक और कृमिराग और इन सबको पट्टसूत्र विशेष माना है।' इतना तो निश्चित है कि ये पाँचों प्रकार कृमि की लाला से बनाए जाते थे । (ख) पंचेन्द्रिय जीवों से निष्पन्न । इसके अनेक प्रकार हैं- (१) औणिक - भेड़ के बालों से बना वस्त्र । (२) औष्ट्रिक - ऊँट के बालों से बना वस्त्र । (३) मृगरोमज - इसके अनेक अर्थ हैं— मृग के रोएँ से बना वस्त्र । ' खरगोश या चूहे के रोएँ से बना वस्त्र । " ० • बालमृग के रोएँ से बना वस्त्र । " १. बृहत्कल्पभाष्य गाथा ३६६२, वृत्ति • रंकु मृग के रोएँ से बना वस्त्र, जिसे 'रांकव' कहा जाता था। १२ (४) कुतप -- चर्म से निष्पन्न वस्त्र।" बकरी के रोएँ या चर्म से निष्पन्न वस्त्र ।" बाल मृग के सूक्ष्म रोएँ से बना वस्त्र ।" देशान्तरों में प्रसिद्ध कुतप रोएँ से बना वस्त्र । " चूहे के चर्म से बना वस्त्र । " चूहे के रोएँ से बना वस्त्र । " (५) किट्ट - भेड़ आदि के रोम विशेष से बना वस्त्र । "यहां अप्रसिद्ध, देशान्तरों में प्रसिद्ध रोम विशेष से बना वस्त्र । " १०. २. वही, गाथा ३६६२ वृत्तिः 'सुवन्ने' त्ति सुवर्णवर्णं सूतं केषाञ्चित् कृमीणां भवति निष्पन्नं सुवर्णसूत्रजम् । Jain Education International मलयो नाम देशस्तत्संभवं मलयजम् । ३. वही, गाथा ३६६२, वृत्ति ६४३ अंशुकः श्लक्ष्णपट : तन्निष्णन्नमंशुकन् । ४. यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृष्ठ १२९, १३० ॥ ५. बृहत्कल्पभाष्य गाथा ३६६२, वृत्ति चीनांशुको नाम कोशिकांराख्य: कृमिस्तस्माद् जातं चीनांशुकम् । ६. निशीथ ६।१०-१२ की चूर्णि : सुहमतरं चीर्णसुर्य भष्णति । चीणविसए वा जं तं चीर्णसूर्य । ७. आचारांगवृत्ति, पत्र २६२ : अंशुचीनांशुकादीनि नानादेशेषु प्रसिद्धाभिधानानि । ८. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८७८ वृत्ति कीजं तु पंचविधम्, तद्यथा-पट्टे, मलये, अंसुए, चीणंसुयं किमिराए - एते पञ्चापि पट्टसूत्रविशेषा । ६. निशीथ भाष्य गाथा ७६० चूर्णि मियाणलोमेसु मियलोमियं । स्थान ५ : टि० ११० स्थानांगवृत्ति, पत्र ३२१ : मृगरोमजं - शशलोमजं मूषकरोमजं वा । ११. विशेषचूणि (बृहत्कल्पभाष्य, भाग ४, पृष्ठ १०१८ में उद्धृत ) मियलोमे पञ्चएयाणं रोमा । १२. अभिधान चिन्तामणि कोष ३३३४ : १७. १८. शंकवं मृगरोमजम् । १३. बृहत् कल्पभाष्य गाथा ३६६१, वृत्ति कुपतो जीणम् । १४. बृहत् कल्पचूर्णि : कुतवं छागलं । १५. विशेषचूणि: (बृहत्कल्प भाष्य भाग ४, पृष्ठ १०१८ में उद्धत ) कुतवो तस्सेव अवयवा । १६. निशीथ भाष्य गाथा ७६०, चूर्णि कुतव किट्टावि रोमविसेसा चैव संतरे, इह अपसिद्धा । आचारांग वृत्ति, पत्र ३६२ । विशेषावश्यक भाष्य गाथा ५७८ वृत्तितत्र मूषिकलोमनिष्पन्तं कौतवम् । १६. वही, गाथा ८७८ वृत्ति - २०. वही गाथा ८७८ वृत्ति--- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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