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टिप्पणियाँ स्थान-५
१. (सू०५)
कामगुण--- काम का अर्थ है— अभिलाषा और गुण का अर्थ है-पुद्गल के धर्म । कामगुण के दो अर्थ हैं' १. मैथुन-इच्छा उत्पन्न करने वाले पुद्गल। २. इच्छा उत्पन्न करने वाले पुद्गल ।
२. (सू०६-१०)
इन सूत्रों में प्रयुक्त संग, राग, मूर्छा, गृद्धि और अध्युपपन्नता-ये शब्द आसक्ति के क्रमिक विकास के द्योतक हैं। इनकी अर्थ-परम्परा इस प्रकार है--
१. संग–इन्द्रिय-विषयों के साथ सम्बन्ध । २. राग-इन्द्रिय-विषयों से लगाव । ३. मूर्छा-इन्द्रिय-विषयों से उत्पन्न दोषों को न देख पाना तथा उनके संरक्षण के लिए सतत चिन्तन करना। ४. गृद्धि प्राप्त इन्द्रिय-विषयों के प्रति असंतोष और अपातन्द्रिय-विषयों की आकांक्षा। ५. अध्युपपन्नता--इन्द्रिय-विषयों के सेवन में एकचित्त हो जाना; उनकी प्राप्ति में अत्यन्त दत्तचित्त हो जाना।
३. (सू० १२)
यहां अहित, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयस और अननुगामिक-इन पांच शब्दों का प्रयोग प्रतिपाद्य विषय पर बल देने के लिए किया गया है। साधारणतया इनसे अहित शब्द का अर्थ ही ध्वनित होता है और प्रत्येक शब्द की अर्थ-भिन्नता पर विचार किया जाए तो इनके अर्थ इस प्रकार फलित होते हैं
अहित—अपाय। अशुभ ---पुण्यरहित। अक्षम–अनौचित्य या असामर्थ्य ।
१. स्थानमवृत्ति, पत्र २७७ : 'काम'त्ति कामस्य-मदना
भिलाषस्य अभिलाषमावस्य वा सपादका, गुणा-धर्माः पुद्गलानां, काम्यन्त इति का....ते च ते गुणाश्चेति वा काय
गुणा इति। २. स्थानांगवृत्ति, २७७, २७८ : सज्यन्ते ---राङ्ग सम्बन्ध
कुर्वन्तीति ४,........... रज्यन्ते-सङ्गकारणं राग यान्तीति,
मूर्छन्ति-तद्दोषानवलोकनेन मोहमचेतनत्वमिव यान्ति संरक्षणानुबन्धवन्तो वा भवन्तीति, गध्यन्ति-प्राप्तस्यासन्तोषेणाप्राप्तस्यापरापरस्याकाङ क्षावन्तो भवन्तीति, अध्युपपद्यन्ते तदेकचित्ता भवन्तीति तदर्जनाय बाऽऽधिक्येनोपपद्यन्तेउपपन्ना घटमाना भवन्तीति ।
३. स्थानांगवृत्ति, पत्र २७८ ।
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