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________________ ठाणं (स्थान) स्थान ५: सूत्र २३६-२४० २३६. एगमेगे णं इंदट्ठाणे पंच सभाओ एकैकस्मिन् इन्द्रस्थाने पञ्च सभाः २३६. इसी प्रकार प्रत्येक इन्द्र की राजधानी में पण्णत्ताओ, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा पांच-पांच सभाएं हैंसभासुहम्मा, 'उववातसभा, सभासुधर्मा, उपपातसभा, १. सुधर्मासभा, २. उपपातसभा, अभिसेयसभा, अलंकारियसभा, अभिषेकसभा, अलंकारिकसभा, ३. अभिषेकसभा, ४. अलंकारिकसभा, ववसायसभा। व्यवसायसभा। ५. व्यवसायसभा। णक्खत्त-पदं नक्षत्र-पदम् नक्षत्र-पद २३७. पंच णक्खत्ता पंचतारा पण्णत्ता, पञ्च नक्षत्राणि पञ्चताराणि प्रज्ञप्तानि, २३७. पांच नक्षत्र पांच तारोंवाले हैंतं जहातद्यथा १. धनिष्ठा, २. रोहिणी, ३. पुनर्वसु, धणिट्ठा, रोहिणी, पुणव्वसू, हत्थो, धनिष्ठा, रोहिणी, पुनर्वसुः, हस्तः, ४. हस्त, ५. विशाखा। विसाहा। विशाखा। पावकम्म-पदं पापकर्म-पदम् पापकर्म-पद २३८. जीवा णं पंचद्वाणणिव्वत्तिए जीवाः पञ्चस्थाननिर्वतितान् पुद्गलान् २३८. जीवों ने पांच स्थानों से निर्वतित पुद्गलों पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा पापकर्मतया अचैषुः वा चिन्वन्ति वा का, पापकर्म के रूप में, चय किया है, चिणंति वा चिणिस्संति वा तं चेष्यन्ति वा, तद्यथा करते हैं तथा करेंगे-- जहा. १. एकेन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का, एगिदियणिव्वत्तिए, एकेन्द्रियनिर्वतितान्, २. द्वीन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का, 'बेइंदियणिव्वत्तिए, द्वीन्द्रियनिर्वतितान, ३. त्रीन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का, तेइंदियणिव्वत्तिए, त्रीन्द्रियनिर्वतितान्, ४. चतुरिन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का, चरिदियणिव्वत्तिए, चतुरिन्द्रयनिर्वतितान्, ५. पंचेन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का। पंचिदियणिव्वत्तिए, पञ्चेन्द्रियनिर्वतितान्। इसी प्रकार जीवों ने पांच स्थानों से एवं-चिण-उवचिण-बंध एवम् –चय-उपचय-बन्ध निर्वतित पुद्गलों का, पापकर्म के रूप में, उदीर-वेद तह णिज्जरा चेव । उदीर-वेदाः तथा निर्जरा चैव । उपचय, बंध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं तथा करेंगे। पोग्गल-पदं पुद्गल-पदम् पुद्गल-पद २३६. पंचपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। पञ्चप्रदेशिकाः स्कन्धाः अनन्ता: २३६. पंच-प्रदेशी स्कंध अनन्त हैं। प्रज्ञप्ताः । २४०. पंचपएसोगाढा पोग्गला अणंता पञ्चप्रदेशावगाढा: पुद्गलाः अनन्ताः २४०. पंच-प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । जाव पंचगुणलुक्खा पोग्गला प्रज्ञप्ताः यावत् पञ्चगुणरूक्षाः पुद्गलाः पांच समय की स्थिति वाले पुद्गल अणंता पण्णत्ता। अनन्ताः प्रज्ञप्ताः। अनन्त हैं। पांच गुण काले पुद्गल अनन्त हैं। इसी प्रकार शेष वर्ण तथा गंध, रस और स्पर्शों के पांच गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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