SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 652
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ६११ स्थान ५: सूत्र २२५-२३० कप्प-पदं कल्प-पदम् कल्प-पद २२५. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा सौधर्मेशानयोः कल्पयोः विमानानि २२५. सौधर्म और ईशान देवलोक में विमान पंचवण्णा पण्णता, तं जहा- पञ्चवर्णानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- पांच वर्षों के होते हैंकिण्हा, •णीला, लोहिता, कृष्णानि, नीलानि, लोहितानि, १. कृष्ण, २. नील, ३. लोहित, हालिद्दा, सुकिल्ला। हारिद्राणि, शुक्लानि। ४. हारिद्र, ५. शुक्ल । २२६. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु विमाणा सौधर्मशानयोः कल्पयोः विमानानि २२६. सौधर्म और ईशान देवलोक में विमान पंचजोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं पञ्चयोजनशतानि अवं उच्चत्वेन पांच सौ योजन ऊंचे हैं। पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि । २२७. बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु देवाणं ब्रह्मलोक-लान्तकयोः कल्पयोः देवानां २२७. ब्रह्मलोक तथा लांतक देवलोक में देव भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं भवधारणीयशरीरकाणि उत्कर्षण पञ्च ताओं का भवधारणीय शरीर उत्कृष्टतः पंच रयणी उड्ड उच्चत्तेणं रत्नीः ऊर्ध्वं उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । पांच रत्नि ऊंचा होता है। पण्णत्ता। बंध-पदं बन्ध-पदम बन्ध-पद २२८. णेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे नैरयिकाः पञ्चवर्णान् पञ्चरसान् २२८. नैरयिकों ने पांच वर्ण तथा पांच रसवाले पोग्गले बंधेसु वा बंधति वा पुद्गलान् अभान्त्सुः वा बध्नन्ति वा पुद्गलों का बंधन [ कर्मरूप में स्वीकरण] बंधिस्संति वा, तं जहा- बन्धिष्यन्ति वा, तद्यथा किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे-- किण्हे, •णीले, लोहिते, हालिदे, कृष्णान्, नीलान्, लोहितान्, हारिद्रान्, । १. कृष्णवर्णवाले, २. नीलवर्णवाले, सुक्किले। शुक्लान् । ३. लोहितवर्णवाले, ४. हारिद्रवर्णवाले, तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, तिक्तान् कटु कान्, कपायान्. अम्लान्, ५.शुक्लयर्शदाले। मधुरे। मधुरान् । १. तिक्तरसवाले, २. कटु रसवाले, ३. कषायरसवाले, ४. अम्लरसवाले, ५. मधुररसवाले। २२६. एवं_जाव वेमाणिया। एवम्-यावत् वैमानिकाः । २२६. इसी प्रकार वैमानिकों तक के सारे ही दण्डक-जीवों ने पांच वर्ण तथा पांच रस वाले पुद्गलों का बंधन [कर्मरूप में स्वीकरण] किया है, कर रहे हैं तथा करेंगे। महाणदी-पदं महानदी-पदम् महानदी पद १३०. जंबुद्दीवे दीवे मंबरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे २३०. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत थे। दक्षिण दाहिणे णं गंग महादि पंच महा- गङ्गा महानदी पञ्च महानद्यः समाप. भाग---भरतक्षेत्र में गंगा महानदी में पांच णदीओ समप्लेति, तं जहा- यन्ति, तद्यथा..... महानदियां मिलती है९३३ - जउजा, सरऊ, आवी, कोसी, यमुना, सरयू:, आवी, कोशी, मही। १. यमुना, २. सरय, ३. आवी, मही। ४. कोसी, ५. मही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy