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ठाणं (स्थान)
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स्थान ५: सूत्र २१४
२. ससि सगलपुण्णमासी, २. शशिसकलपूर्णमासी,
२. जिस संवत्सर में चन्द्रमा सभी पूर्णिजोएइ विसमचारिणक्खत्ते। योजयति विषमचारिनक्षत्रः ।
माओं का स्पर्श करता है, अन्य नक्षत्र
विषमचारी-अपनी तिथियों का अतिकडुओ बहूदओ वा, कटुक: बहूदको वा,
वर्तन करने वाले होते हैं. जो कटक --- तमाहु संवच्छरं चंदं ॥ तमाहुः संवत्सरं चन्द्रम् ।।
अतिगर्मी और अतिसर्दी के कारण भयंकर होता है तथा जिसमें पानी अधिक गिरता
है, उसे चन्द्र संवत्सर करते हैं। ३. विसमं पवालिणो परिणमंति, ३. विषमं प्रवालिनः परिणमन्ति ३. जिम संवत्सर में वृक्ष असमय अंकुरित अणुदूसू देति पुप्फफलं। अनृतुषु ददति पुष्पफलम् ।
हो जाते हैं, असमय में फूल तथा फल आ वासं ण सम्म वासति, वर्षो न सम्यग् वर्षति,
जाते हैं, वर्षा उचित मात्रा में नहीं होती, तमाहु संवच्छरं कम्मं ॥ तमाहुः संवत्सरं कर्म ॥
उसे कर्म संवत्सर कहते हैं। ४. पुढविदगाणं तु रसं, ४. पृथिव्युदकानां तु रस,
४. जिस संवत्सर में वर्षा अल्प होने पर पुष्फफलाणं तु देइ आदिच्चो। पुष्पफलानां तु ददाति आदित्यः । भी सूर्य पृथ्वी, जल तथा फूलों और फलों अप्पेणवि वासेणं, अल्पेनापि वर्षेण,
को मधुर और स्निग्ध रस प्रदान करता है सम्मं णिप्फज्जए सासं॥ सम्यग् निष्पद्यते शस्यम् ।
तथा फसल अच्छी होती है, उसे आदित्य
संवत्सर कहते हैं। ५. आदिच्चतेयतविता, ५. आदित्यतेजस्तप्ता,
५. जिस संवत्सर में सूर्य के ताप से क्षण, खणलवदिवसा उऊ परिणमंति। क्षणलवदिवसर्तव: परिणमन्ति । लव, दिवस और ऋतु तप्त जैसे हो उठते पूरिति रेणु थलयाई, पूरयन्ति रेणभिः स्थलकानि,
हैं तथा आंधियों से स्थल भर जाता है, तमाह अभिवडितं जाण ॥ तमाहुः अभिवधितं जानीहि ।
उसे अभिवधित संवत्सर कहते हैं। जीवस्स णिज्जाणमग्ग-पदं जीवस्य-निर्याणमार्ग-पदम्
जीवस्य-निर्याणमार्ग-पद २१४. पंचविधे जीवस्स णिज्जाणमग्गे पञ्चविधः जीवस्य निर्याणमार्गः प्रज्ञप्तः, २१४. जीव के निर्याण-मार्ग पांच हैंपण्णत्ते, तं जहातद्यथा
१.पैर, २. ऊरु-घुटने से ऊपर का भाग, पाहि, उरूहि, उरेणं, सिरेणं, पादैः, ऊरुभिः, उरसा, शिरसा, ३. हृदय, ४. सिर, ५. सारे अंग। सव्वंगेहि। सर्वाङ्गः।
१.पैरों से निर्याण करने वाला जीव नरकपाएहि णिज्जायमाणे णिरयगामी पादैः निर्यान् नरकगामी भवति । गामी होता है। भवति।
२. ऊर से निर्याण करने वाला जीव उरूहि णिज्जायमाणे तिरियगामी ऊरुभिः निर्यान् तिर्यग्गामी भवति । तिर्यगामी होता है। भवति।
३. हृदय से निर्याण करने वाला जीव उरेणं णिज्जायमाणे मणुयगामी उरसा निर्यान् मनुष्यगामी भवति। मनुष्यगामी होता है। भवति ।
४. सिर से निर्याण करने वाला जीव देवसिरेणं णिज्जायमाणे देवगामी शिरसा निर्यान् देवगामी भवति।
गामी होता है। भवति ।
५. सारे अंगों से निर्याण करने वाला जीव सध्वंगेहि णिज्जायमाणे सिद्धिगति- सर्वाङ्गः निर्यान् सिद्धिगति-पर्यवसानः सिद्धगति में पर्यवसित होता है। पज्जवसाणे पण्णत्ते।
प्रज्ञप्तः ।
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