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________________ ठाणं (स्थान) ६०४ स्थान ५ : सूत्र २०२-२०५ उत्कल-पद २०२. उत्कल" [उत्कट ] पाच प्रकार के होते उक्कल-पद उत्कल-पदम् २०२. पंच उक्कला पण्णता, तं जहा.. पञ्च उत्कलाः प्रज्ञप्ताः, तदयथा... दंडुक्कले, रज्जुक्कले, दण्डोत्कल:, राज्योत्कल:, तेणुक्कले, देसुक्कले, सब्वुक्कले। स्तेनोत्कलः, देशोत्कलः, सर्वोत्कलः । १. दण्डोकल-जिसके पास प्रबल दण्डशक्ति हो, २. राज्योत्कल-जिसके पास उत्कट प्रभुत्व हो, ३. स्तनोत्कल-जिसके पास चोरों का प्रबल संग्रह हो, ४. देशोत्कल-जिसके पास प्रबल जनमत हो, ५. सर्वोत्कल-जिसके पास उक्त दण्ड आदि सभी उत्कट हों। समिति-पद २०३. समितियां पांच है १. ईयांसमिति, २. भाषासमिति, ३. एपणासमिति, ४. आदान-भांड-अमन-निक्षेपणासमिति, ५. उच्चार-प्रथवण-क्ष्वेल-जल्ल-सिंघाणपरिष्ठापनिकासमिति। समिति-पदम् सभिति-पदं २०३. पंच समितीओ पण्णताओ, तं पञ्च समितयः प्रज्ञप्ताः, तदयथा- इरियासमिती, भासासमिती, ईर्यासमितिः, भाषासमितिः, 'एसणासमिती, एषणासमितिः, आयाणभंड-मत्त-णिक्खेवणासमिती, आदानभाण्ड-अमत्र-निक्षेपणासमितिः, उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण- उच्चार-प्रश्रवण-श्वेल-सिंघाण-जल्लजल्ल-पारिठावणियासमिती। पारिष्ठापनिकासमितिः। जीव-पदं जीव-पदम् जोव-पद २०४. पंचविधा संसारसमावण्णगाजीवा पञ्चविधाः संसारसमापन्नकाः जीवाः २०४. संसारसमापन्नक जीव पांच प्रकार के पण्णत्ता, तं जहा... प्रज्ञप्ताः, तद्यथा होते हैएगिदिया, 'बेइंदिया, तेइंदिया, एकेन्द्रियाः, द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, १. एकेन्द्रिय, २. द्वीन्द्रिय, ३. वीन्द्रिय, चरिदिया, पदिदिया। चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाः। ४. चतुरिन्द्रिय, ५. पंचेन्द्रिय । गति-आगति-पदं गति-आगति-पदम् गति-आगति-पद २०५. एगिदिया पंचगतिया पंचागतिया एकेन्द्रियाः पञ्चगतिकाः पञ्चागतिका: २०५. एकेन्द्रिय जीवों की पांच स्थानों में गति पण्णता, तं जहा...प्रज्ञप्ताः, तद्यथा तथा पांच स्थानों से आतिहोती है.--- एगिदिए एगितिएसु उववज्जमाणे एकेन्द्रियः एकेन्द्रियेषु उपपद्यमानः एकन्द्रिय जीव एकेन्द्रिय शरीर में उत्पन्न एगिदिएहितो वा, बेइंदिएहितो एकेन्द्रियेभ्यो वा, द्वीन्द्रियेभ्यो वा, होता हुआ एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, वा, तेइंदिएहितो वा, चरिदिए- त्रीन्द्रियेभ्यो वा चतुरिन्द्रियेभ्यो वा चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय से उत्पन्न हितो वा, पंचिदिएहितो वा, पञ्चेन्द्रियेभ्यो वा उपपद्यत । होता है। उवज्जेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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